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आचारदिनकर (खण्ड-३) 188 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिकं-पौष्टिककर्म विधान दिशाओं में चार-चार विद्यादेवियों की स्थापना करें। सातवीं पीठ पर गणपति, कार्तिकेय, क्षेत्रपाल, पुरदेवता एवं चतुर्निकाय देवों की स्थापना करें। पंचपरमेष्ठी की पूजा पूर्ववत् करें। उस पीठ को पाँच हाथ के वस्त्र से आच्छादित करें। शेष सर्व क्रिया नंद्यावर्त्त-पूजा के समान करें। नंद्यावर्त के समान ही दिक्पालों की पूजा करें। उस पीठ पर दस हाथ का वस्त्र ढ़कें। राशियों की पूजा-विधि यह है -
पुष्पांजलि लेकर निम्न छंदपूर्वक राशिपीठ के ऊपर पुष्पांजलि प्रक्षेपित करें - "मेषवृषभमिथुनकर्कटसिंहकनीवाणिजादिचापधराः ।
मकरधनमीनसंज्ञा संनिहिता राशयः सन्तु।। फिर निम्न छंदपूर्वक सर्व प्रकार की पूजा-सामग्रियों से मेष राशि की पूजा करें -
। “मंगलस्य निवासाय सूर्योच्चत्वकराय मेषाय पूर्वसंस्थाय नमः।"
ॐ नमो मेषाय मेष इह शान्तिकमहोत्सवे आगच्छ-आगच्छ इदमयं पाद्यं बलिं चरुं आचमनीयं गृहाण-गृहाण सन्निहितो भव-भव स्वाहा जलं गृहाण-गृहाण गन्धं अक्षतान् फलानि पुष्पं धूपं दीपं नैवेद्यं सर्वोपचारान् गृहाण-गृहाण शान्तिं कुरु-कुरू तुष्टि-पुष्टिं ऋद्धि-वृद्धिं सर्व समीहितानि यच्छ-यच्छ स्वाहा।।"
इसी प्रकार क्रमशः वृषभ आदि राशियों की भी उन-उन के छंदों एवं मंत्रों से पूजा करें। प्रत्येक राशि के मंत्र इस प्रकार हैं - वृषभराशि हेतु -
"चन्द्रोच्चकरणो याम्यदिशिस्थायी कवेर्गृहं ।
वृषः सर्वाणि पापानि शांतिकेऽत्र निकृन्ततु।।" “ॐ नमो वृषाय वृष इह शान्तिकमहोत्सवे ..... शेष पूर्ववत्। मिथुनराशि हेतु -
"शशिनंदनगेहाय राहूच्चकरणाय च। पश्चिमाशास्थितायास्तु मिथुनाय नमः सदा।।"
“ॐ नमो मिथुनाय मिथुन इह शान्तिकमहोत्सवे ...... शेष पूर्ववत्।"
कर्कराशि हेतु -
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