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________________ आचारदिनकर (खण्ड-३) 172 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक- पौष्टिककर्म विधान आयुधों एवं वाहनों को वास्तुशास्त्र से जानें | नवग्रहों के प्रतिष्ठा की विधि यह है - जिनस्नात्र के बाद पच्चीस वस्तुओं से निर्मित वासक्षेप द्वारा मंत्रन्यास करते हैं, इससे पूर्व सभी ग्रहों की मूर्तियों को क्षीर (दूध) से स्नान कराएं। नवग्रह के स्थापना के मंत्र निम्नांकित हैं सूर्यमंत्र - "ॐ ह्रीं श्रीं घृणि- घृणि नमः सूर्याय भुवनप्रदीपाय जगच्चक्षुषे जगत्साक्षिणे भगवन् श्री सूर्य इह मूर्ती स्थापनायां अवतर-अवतर तिष्ठ तिष्ठ प्रत्यहं पूजकदत्तां पूजां गृहाण-गृहाण स्वाहा । " चंद्रमंत्र “ॐ चं चं चुरू-चुरू नमः चन्द्राय औषधीशाय सुधाकराय जगज्जीवनाय सर्वजीवितविश्वंभराय भगवन् श्री चन्द्र इह मूर्ती.... शेष पूर्ववत् । " मंगल ( भौम) मंत्र- "ॐ ह्रीं श्रीं नमो मंगलाय भूमिपुत्राय वक्राय लोहितवर्णाय भगवन् मंगल इह मूर्ती ...... शेष पूर्ववत् । " बुधमंत्र “ऊँ क्रौं प्रौं नमः श्रीसौम्याय सोमपुत्राय प्रहर्षुलाय हरितवर्णाय भगवन् बुध इह मूर्ती..... शेष पूर्ववत् । " गुरु (जीव) मंत्र "ॐ जीवजीव नमः श्री गुरवे सुरेन्द्रमंत्रिणे सोमाकाराय सर्ववस्तुदाय सर्वं शिवंकराय भगवन् श्री बृहस्पते इह मूर्ती. शेष पूर्ववत् । " शुक्रमंत्र - "ॐ श्रीं श्रीं नमः श्री शुक्राय काव्याय दैत्यगुरुवे संजीवनीविद्यागर्भाय भगवन् श्री शुक्र इह मूर्तीशेष पूर्ववत् । " शनिमंत्र “ॐ शं शं नमः शनैश्चराय पंगवे महाग्रहाय श्यामवर्णाय नीलवासाय भगवन् श्री शनैश्चर इह मूर्ती.. शेष पूर्ववत् ।" राहुमंत्र- "ॐ रं रं नमः श्री राहवे सिंहिकापुत्राय अतुलबलपराक्रमाय कृष्णवर्णाय भगवन् श्री राहो इह मूर्ती..... शेष पूर्ववत् ।" केतुमंत्र “ॐ धूं धूं नमः श्री. केतवे शिखाधराय उत्पातदाय राहु प्रतिच्छन्दाय भगवन श्री केतो इह मूर्ती.. शेष पूर्ववत् । " 1 - — इन मंत्रों द्वारा क्रम से तीन-तीन बार वासक्षेपपूर्वक प्रतिष्ठा सम्पन्न करें। तत्पश्चात् चैत्यवंदन एवं शान्तिपाठ करें। नक्षत्रों की प्रतिष्ठा भी उन-उन देवताओं की मूर्तियों एवं मंत्रों द्वारा संक्षेप में सम्पन्न करें। शेष प्रतिष्ठा - विधि ग्रहप्रतिष्ठा - विधि की भाँति करें । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001720
Book TitlePratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size16 MB
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