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आचारदिनकर (खण्ड-३) 165 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान है, क्योंकि गोपनीयता से सिद्धि होती है और प्रकाशन से संशय होता
सर्वदेवियों की प्रतिष्ठा उन-उन देवी मंत्रों से तथा उन-उनके कल्प में कहे गए अनुसार या गुरु के उपदेशानुसार करें। सर्वदेवियों की प्रतिष्ठा में शेष सभी क्रियाएँ एक जैसी हैं। जिन देवियों की प्रतिष्ठा-विधि एवं मंत्र अनुल्लेखित हों, उनसे सम्बन्धित कल्प भी उपलब्ध न हों तथा उस सम्बन्ध में गुरु के उपदेश का अभाव हो, नामानुसार मंत्र भी नहीं जानते हों, तो उन देवियों की प्रतिष्ठा अम्बामंत्र या चण्डीमंत्र या त्रिपुरामंत्र से करें। देवी-प्रतिष्ठा में शासनदेवी, गच्छदेवी, कुलदेवी, नगरदेवी, भुवनदेवी, क्षेत्रदेवी एंव दुर्गादेवी - इन सभी की प्रतिष्ठा-विधि एक जैसी ही हैं। इस प्रकार प्रतिष्ठा-अधिकार में देवी- प्रतिष्ठा की विधि सम्पूर्ण होती है।
__ अब क्षेत्रपाल आदि की प्रतिष्ठा-विधि बताते हैं। वह इस प्रकार है -
सर्वप्रथम प्रतिष्ठा कराने वाला ग्रहशान्ति हेतु शान्तिक एवं पौष्टिक-कर्म करे। फिर बृहत्स्नात्रविधि से अर्हत् परमात्मा की स्नात्रपूजा करे। क्षेत्रपाल आदि की मूर्ति को परमात्मा के चरणों के आगे स्थापित करे। प्रासाद में या घर में प्रतिष्ठित करने हेतु क्षेत्रपाल की मूर्तियाँ दो प्रकार की होती हैं - १. कायारूप एवं २. लिंगरूप, किन्तु इन दोनों की प्रतिष्ठा-विधि एक जैसी ही है। पूर्व में कहे गए अनुसार वेदी-मण्डल की स्थापना करें और पूर्ववत् उसकी पूजा करें। फिर मिश्रित पंचामृत द्वारा क्षेत्रपाल के मूलमंत्र से उनकी मूर्ति को स्नान कराए। मूलमंत्र निम्न है - ___ "ऊँ क्षां क्षीं दूं मैं क्षौं क्षः क्षेत्रपालाय नमः।
तत्पश्चात् सबको दूर करके एकान्त में विधिकारक गुरु मूलमंत्र से मूर्ति के सभी अंगों पर तीन-तीन बार वासक्षेप डालकर प्रतिष्ठा करे। तिल के चूर्ण से होम करें तथा करम्ब, यूष (शोरवा), कंसार, बकुल (बाफला), लपन (लापसी) एवं श्रीखण्ड सहित उनके आगे नैवेद्य चढ़ाएं। कुंकुम, तेल, सिन्दूर एवं लाल पुष्प द्वारा उनकी मूर्ति की पूजा करें। क्षेत्रपाल, बटुकनाथ, कपिलनाथ, हनुमान,
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