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________________ परिचय दिया हैं, बल्कि जिनशासन के गौरव में अभिवृद्धि करते हुए जयपुर, श्रीमाल समाज की शान को भी बढ़ाया है। इस ग्रन्थ के प्रथम एवं द्वितीय भाग का प्रकाशन हो चुका है। द्वितीय भाग का विमोचन जब प.पू. विनिता श्रीजी म.सा. के महत्तरा पदारोहण के दरम्यान हुआ, तब मैं भी वही था। डॉ. सागरमलजी सा. के मुखारविंद से इस ग्रन्थ के सम्बन्ध में तथा साध्वी जी के अथक परिश्रम के बारे में सुना एवं यह जाना कि अभी इस ग्रंथ के तीसरे एवं चौथे भाग का प्रकाशन कार्य शेष है तो उसी समय मन में एक भावना जागृत हुई कि इस तीसरी पुस्तक के प्रकाशन का लाभ क्यों ना मैं ही लूं ? उसी समय मैंने अपनी भावना श्रीसंघ के समक्ष अभिव्यक्त की। पूज्या श्री ने मेरी इस भावना को स्वीकार करते हुए इस सम्बन्ध में सहर्ष स्वीकृति प्रदान की। इस ग्रन्थ के अनुवाद के प्रेरक, प्रज्ञा-दीपक, प्रतिभा सम्पन्न डॉ. सागरमलजी सा. भी अनुमोदना के पात्र है। इस महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ के अनुवाद के संपादन एवं संशोधन कार्य में उन्होंने अपना पूर्ण । योगदान दिया है, उनके प्रति शाब्दिक धन्यवाद प्रकट करना उनके श्रम एवं सहयोग का सम्यक् मूल्यांकन नहीं होगा। क्रियाराधको एवं शोधार्थियों के लिए उपयोगी इस ग्रन्थ के प्रकाशन की बेला में मैं साध्वी मोक्षरत्ना श्रीजी म.सा. के इस कार्य की पुनः प्रशंसा करते हुए, उनके यशस्वी जीवन की मंगल कामना करता हूँ। रिखबचन्द झाडझूड़ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001720
Book TitlePratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size16 MB
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