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________________ "हृदयोद्गार" भारत संस्कृति प्रधान देश है। भारतीय संस्कृति की मुख्य दो धाराएँ रही है - १. श्रमण संस्कृति एवं २. वैदिक संस्कृति। इस संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए समय-समय पर अनेक ऋषि-मुनियों ने साहित्य का सर्जन कर समाज का दिग्दर्शन किया। प्राचीन काल के साहित्यों की यह विशेषता रही हैं कि उस समय जिन-जिन ग्रन्थों की रचना हुई, चाहे वे फिर आचार-विचार सम्बन्धी ग्रन्थ हों, विधि-विधान सम्बन्धी ग्रन्थ हों या अन्य किसी विषय से सम्बद्ध ग्रन्थ, उन सभी की भाषा प्रायः मूलतः संस्कृत या प्राकृत रही, जो तत्कालीन जनसामान्य के लिए सुगम्य थी। तत्कालीन समाज उन ग्रन्थों का सहज रूप से अध्ययन कर अपने जीवन में उन आचारों को ढाल सकता था। किन्तु वर्तमान परिस्थितियों में वे ही ग्रंथ जनसामान्य के लिए दुरुह साबित हो रहे हैं। भाषा की अगम्यता के कारण हम उन ग्रंथों का सम्यक् प्रकार से अध्ययन नहीं कर पा रहे, जिसके फलस्वरूप हमारे आचार-विचारों में काफी गिरावट आई हैं। अनभिज्ञता के कारण हम अपनी ही मूल संस्कृति को भूलते जा रहे ऐसी परिस्थिति में उन महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का सरल-सुबोध भाषा में लिखा जाना अत्यन्त आवश्यक है। इस आवश्यकता को महसूस करते हुए समन्वय साधिका प.पू.प्र. महोदया स्व. श्री विचक्षण श्रीजी म.सा. की शिष्यारत्ना प.पू. हर्षयशा श्रीजी म.सा. की चरणोपासिका विद्वद्वर्या प.पू. मोक्षरत्ना श्रीजी म.सा. ने संस्कृत एवं प्राकृत भाषा में निबद्ध आचारदिनकर नामक विशालकाय ग्रन्थ का सरल हिन्दी भाषा में अनुवाद किया। वास्तव में उनका यह प्रयास प्रशंसनीय है। अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त, विद्वतवर्य डॉ. सागरमल जी सा. के दिशा-निर्देशन में साध्वी मोक्षरत्ना श्रीजी ने इतने अल्प समय में इस दुरुह ग्रंथ का अनुवाद कर न केवल अपनी कार्यकुशलता का ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001720
Book TitlePratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size16 MB
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