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आचारदिनकर (खण्ड-३) 155 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान पार्श्व में नवग्रहों की मूर्तियाँ होती हैं। इस प्रकार से निर्मित परिकर की प्रतिष्ठा हेतु बिम्ब-प्रतिष्ठा के योग्य लग्न आने पर भूमिशुद्धि, अमारिघोषणा एवं संघ-आह्वानपूर्वक बृहत्स्नात्रविधि से परमात्मा की स्नात्रपूजा करें। तत्पश्चात् कलश-पूजा के सदृश परिकर की पूजा करें। परिकर पर सात प्रकार के धान्य चढ़ाएं। फिर दो अंगुलियों को खड़ी करके रौद्रदृष्टिपूर्वक बाएँ हाथ की हथेली में स्थित जल से उसका सिंचन करें। अक्षत से पूर्ण पात्र उसके आगे चढ़ाएं। तत्पश्चात् निम्न मंत्रपूर्वक परिकर की गन्ध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप एवं नैवेद्य से पूजा करें तथा सदशवस्त्र से उसे ढक दें -
“ॐ ह्रीं श्रीं जयन्तु जिनोपासकाः सकला भवन्तु स्वाहा।"
फिर चार स्तुतियों द्वारा चैत्यवंदन करें। शान्तिदेवता, श्रुतदेवता, क्षेत्रदेवता, भुवनदेवता, शासनदेवता, वैयावृत्यकर देवता एवं प्रतिष्ठादेवता के आराधनार्थ कायोत्सर्ग एवं स्तुतियाँ पूर्व की भाँति करें। फिर लग्नवेला के आने पर सब लोगों को दूरकर द्वादशमुद्रा एवं सूरिमंत्र द्वारा वासक्षेप अभिमंत्रित करके वासक्षेप डालें। धर्मचक्र पर निम्न मंत्र से तीन बार वासक्षेप डालें -
“ॐ ह्रीं श्रीं अप्रतिचक्रे धर्मचक्राय नमः। फिर सर्वग्रहों पर निम्न मंत्र से तीन बार वासक्षेप डालें - “ॐ घृणिचद्रां ऐं क्षौं ठः ठः क्षां क्षी सर्वग्रहेभ्यो नमः।"
उसके बाद निम्न मंत्र से सिंहासन पर तीन बार वासक्षेप डालें -
“ऊँ ह्रीं श्रीं आद्यशक्ति कमलासनाय नमः।" । ... तदनन्तर निम्न मंत्र से अंजलिबद्ध दोनों पुरुषों पर तीन-तीन बार वासक्षेप डालें -
“ॐ ह्रीं श्रीं अर्हद्भक्तेभ्यो नमः।
तत्पश्चात् निम्न मंत्र से दोनों चामरधारियों पर तीन-तीन बार वासक्षेप डालें - ___ "ॐ हीं चं चामरकरेभ्यो नमः ।"
फिर निम्न मंत्र से दोनों हाथियों पर तीन-तीन बार वासक्षेप डालें -
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