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आचारदिनकर (खण्ड-३). 142 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान
"इक्षुरसोदादुपहृत इक्षुरसः सुरवरैस्तदभिषेके। भवदवसदवथु भविनां जनयतु शैत्यं सदानन्दम् ।।
फिर पानी की धारा दें, चन्दन का तिलक करें, पुष्प चढ़ाएं एवं धूप-उत्क्षेपण करें। फिर कस्तुरी या कर्पूर के लेप से लिप्त एक सौ आठ कलशों से स्नान कराएं। पुनः पुष्पांजलि अर्पण करें। तत्पश्चात् निम्न श्लोकपूर्वक सर्वौषधि से स्नान कराएं -
... "सर्वोषधीषु निवसति अमृतमिदं सत्यमर्हदभिषेकात् । तत्सर्वौषधिसहितं पंचामृतमस्तु वः सिद्धयै ।।"
तत्पश्चात् जिनबिम्ब के अंगों का प्रक्षालन करें। फिर उन्हें पोंछकर विलेपन करें। सुगन्धित पुष्पों से पूजा करें। फल, पत्र (पान), सुपारी, अक्षत, धूप, दीप, जल एवं नंदीफल चढ़ाएं। अगरू धूप-उत्क्षेपण करें। पवित्र थाल में “ॐ नमः सूर्याय" इत्यादि मंत्रपूर्वक ग्रहों की स्थापना करें। इसके बाद निम्नांकित ग्रहशान्ति का पाठ करें
“प्रणम्य सर्वभावेन देवं विगतकल्मषम्। ग्रहशान्तिं प्रवक्ष्यामि सर्वविघ्नप्रणाशिनीम् ।।१।।
सम्यक्स्तुता ग्रहाः सर्वे शान्तिं कुर्वन्ति नित्यशः। तेनाहं श्रद्धया किंचित्पूजां वक्ष्ये विधानतः ।।२।।"
ग्रहवर्णानि गन्धानि पुष्पाणि च फलानि च। अक्षतानि हिरण्यानि धूपाश्च सुरभीणि च ।।३।।
एवमादिविधानेन ग्रहाः सम्यक्प्रपूजिताः। व्रजन्ति तोषमत्यर्थ तुष्टाः शान्तिं ददाति च।।४।।
बन्धूकपुष्पसंकाशो रक्तोत्पलसमप्रभः। लोकनाथे जगद्दीपः शान्तिं दिशतु भास्करः ।।१।।
शङ्खहारमृणालाभः काशपुष्पनिभोपमः। शशाको रोहिणीभर्ता सदा शान्तिं प्रयच्छतु।।२।।
धरणीगर्भसंभूतो बन्धुजीवनिभप्रभः। शान्तिं ददातु वो नित्यं कुमारो वक्रगः सदा।।३।।
शिरीषपुष्पसंकाशः कृशाङ्गो भूषणार्जनः। सोमपुत्रो बुधः सौम्यः सदा शान्तिं प्रयच्छतु ।।४।।
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