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________________ आचारदिनकर (खण्ड-३) 140 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान वासक्षेप डालकर, अंजलिमुद्रा बनाकर तथा निम्न मंत्र बोलकर प्रतिष्ठादेवता का विसर्जन करें - “ॐ विसर-विसर प्रतिष्ठादेवते स्वाहा" दिक्पाल एवं ग्रहों का विसर्जन पूर्व की भाँति ‘यान्तुदेव.' एवं 'आज्ञाहीन.' इत्यादि बोलकर करें। जब तक कंकण-मोचन नहीं होता है, तब तक नित्य बृहत्स्नात्रविधि से स्नात्र करें। कंकण-मोचन हो जाने पर एक वर्ष तक नित्य लघुस्नात्रविधि से स्नात्र करें। एक वर्ष पूर्ण हो जाने पर बृहत्स्नात्रविधि से स्नात्र करें तथा उसके बाद नित्य पूजा करें। - यह हमारी परम्परा के अनुसार कंकण-मोचन की विधि है। अब अन्य आचार्यों के मतानुसार कंकण-मोचन की विधि बताते बोलकर निसर्वप्रथम पूजा करत करें। चन्दन ए दुग्ध, दही, इक्षुरस सकोरे __ प्रतिष्ठा दिन से तीन, पाँच, सात या नौ दिनों बाद कंकण-मोचन करें। वहाँ नंदीफल (नैवेद्य) बनाएं। नैवेद्य में दो सकोरे खीर तथा सत्ताईस पूड़ी या रोटी बनाएं। घृत, दुग्ध, दही, इक्षुरस तथा सौषधि से पंचामृतस्नात्रविधि करें। चन्दन एवं कर्पूर के विलेपन से बिम्ब की सर्वप्रथम पूजा करें। “नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः" बोलकर निम्न छंदपूर्वक बिम्ब के आगे कुसुमांजलि चढ़ाएं। "उवणेउमंगलं वो जिणाण मुहालिजालसंवलिआ। तित्थपवत्तणसमए तियसविमुक्का कुसुमवुट्ठी ।।" इसी प्रकार क्रमशः निम्न छंदपूर्वक पैरों पर, हाथों पर एवं सिर पर कुसुमांजलि अर्पण करें - पैरों पर - “जाहिजूहियकुन्दमन्दारनीलुप्पलवरकमलसिन्दुवारचम्पय। समुज्जलपसरन्तपरिमलबहुलगन्धलुद्धनच्चन्तमहुयर।। इयं कुसुमांजलिजिणचलणि चिंतय पावपणासं। मुक्कियतारायणसरिसभवेवह पूरबु आस।।" हाथों पर - "सयवत्तकुंदमालय बहुवियकुसुमाइ पंचवन्नाई। जिणनाहन्हवणकाले दिंतु सुरा कुसुमांजलि हत्था।।" सिर पर - “मुक्कजिणवमुक्कजिणवन्हवनकालम्मि कुसुमांजलिसुरवरिहि महमहंततिहुअणमहग्घिय निवडतजिणपयकमलि हरउ दुरिउ जिणा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001720
Book TitlePratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size16 MB
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