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आचारदिनकर (खण्ड-३) 136 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान
तत्पश्चात् जिनबिम्ब के आगे विशाल श्रीपर्णी वृक्ष से निर्मित या अन्य उत्तम काष्ठ से निर्मित पीठ या भूमि को गोबर से लीप कर शुद्ध करें। फिर हाथ में पुष्पांजलि लेकर निम्न छंदपूर्वक पीठ के ऊपर या गोबर से लिप्त शुद्ध भूमि पर पुष्पांजलि चढ़ाएं -
‘मंगलं श्रीमदर्हन्तो मंगलं जिनशासनम्। मंगलं सकलः संघो मंगलं पूजका अमी।।"
तत्पश्चात् निम्न छंद द्वारा जिनबिम्ब के आगे चंदन या सोने-चाँदी का दर्पण रखें या अक्षत का दर्पण आलेखित करें -
“आत्मालोकविधौ जनोपि सकलस्तीव्र तपो दुश्चरं दानं ब्रह्मपरोपकराकरणं कुर्वन्परिस्फूर्जति। सोऽयं यत्र सुखेन राजति स वै तीर्थाधिपस्याग्रतो निर्मेयः परमार्थवृत्तिविदुरैः संज्ञानिभिर्दर्पणम् ।।
__ तत्पश्चात् निम्न छंद द्वारा जिनबिम्ब के आगे चन्दन या सोने-चाँदी का भद्रासन रखें या अक्षत का भद्रासन आलेखित करें -
"जिनेन्द्र पादैः परिपूज्य पृष्टैरतिप्रभावैरपि संनिकृष्टम् । भद्रासनं भद्रकरं जिनेन्द्रं पुरो लिखेन्मंगल सत्प्रयोगम् ।।''
फिर निम्न छंद द्वारा जिनबिम्ब के आगे चंदन या सोने-चाँदी का वर्धमान-संपुट रखें या अक्षत का वर्धमान-संपुट आलेखित करें -
“पुण्यं यशः समुदयः प्रभुता महत्त्वं सौभाग्यधीविनयशर्मनोरथांश्च।
वर्धन्त एव जिननायक ते प्रसादात् तद्वर्धमानयुगसंपुटमादधानः।।
तत्पश्चात् निम्न छंद द्वारा बिम्ब के आगे चन्दन या सोने-चाँदी का कलश रखें या अक्षत का पूर्ण कलश आलेखित करें -
“विश्वत्रये च स्वकुले जिनेशो व्याख्यायते श्रीकलशायमानः। अतोऽत्र पूर्ण कलशं लिखित्वा जिनार्चनाकर्म कृतार्थयामः ।।"
तत्पश्चात् निम्न छंद द्वारा बिम्ब के आगे चन्दन या सोने-चाँदी का श्रीवत्स रखें या अक्षत का श्रीवत्स आलेखित करें -
“अन्तः परमज्ञानं यद्भाति जिनाधिनाथहृदयस्य । तच्छ्रीवत्सव्याजात्प्रकटीभूतं बहिर्वन्दे ।।"
फिर निम्न छंद द्वारा बिम्ब के सम्मुख चन्दन या सोने-चाँदी का मत्स्ययुगल रखें या अक्षत का मत्स्ययुगल आलेखित करें -
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