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आचारदिनकर (खण्ड-३) 135 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान
फिर निम्न छंद द्वारा जिनबिम्ब के आगे विविध प्रकार के धान्य रखें -
“गोधूमतन्दुलतिलैर्हरिमन्थकैश्च मुद्गाढकीयवलायमकुष्टकैश्च।
कुल्माषवल्लवरचीनकदेवधान्यैर्मत्यैः कृता जिनपुरः फलदोपदास्तु।।
तत्पश्चात् निम्न छंद द्वारा जिनबिम्ब के आगे सभी गर्म मसाले (कालीमिर्च, सौंठ, जीरा, लौंग आदि) रखें -
"शुण्ठीकणामरिचरामठजीरधान्यश्यामासुराप्रभृतिभिः पटुवेसवारैः ।
संढौकनं जिनपुरो मनुजैर्विधीयमानं मनांसि यशसा विमलीकरोतु ।।
फिर निम्न छंद द्वारा जिनबिम्ब के सम्मुख सभी प्रकार की औषधि रखें -
___ "उशीरवाटिकाशिरोज्वलनचव्याधात्रीफलैर्बलासलिलवत्सकैर्घनविभा वरीवासकैः।
वचावरविदारिकामिशिशताह्वयाचन्दनैः प्रियंगुतगरैर्जिनेश्वरपुरोस्तु नो ढौकनम्।। । तत्पश्चात् निम्न छंद द्वारा जिनबिम्ब के सम्मुख ताम्बूल (पान, सुपारी आदि) चढ़ाएं -
“भुजंगवल्लीछदनैः सिताभ्रकस्तूरिकैलासुरपुष्पमित्रैः। सजातिकोशैः सममेव चूर्णैस्ताम्बूलमेवं तु कृतं जिनाये।।" फिर निम्न दो छंदों द्वारा जिनबिम्ब की वस्त्रपूजा करें - "सुमेरुश्रृंगे सुरलोकनाथः स्नात्रावसाने प्रविलिप्य गन्धैः। जिनेश्वरं वस्त्रचयैरनेकैराच्छादयामास निषक्त भक्तिः।।१।। ततस्तदनुकारेण सांप्रतं श्राद्धपुंगवाः। कुर्वन्ति वसनैः पूजां त्रैलोक्यस्वामिनोऽग्रतः ।।२।।"
उसके पश्चात् निम्न छंद द्वारा सोने-चाँदी से निर्मित मुद्राओं एवं मणियों से जिनबिम्ब के अंगों की पूजा करें -
“सुवर्णमुद्रामणिभिः कृतास्तु पूजा जिनस्य स्नपनावसाने। अनुष्ठिता पूर्वसुराधिनाथैः सुमेरुश्रृंगे धृतशुद्धभावैः।।"
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