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आचारदिनकर (खण्ड-३) 133 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान
शेष क्रमेण तदनन्तरमिन्द्रवृन्दं कल्पासुरर्भवननाथमुखं व्यधत्त। स्नात्रं जिनस्य कलशैः कलितप्रमोद प्रावारवेषविनिवारितसर्वपापम् ।।१७।।
तस्मिन्क्षणे बहुलवादितगीतनृत्यगर्भ महं च सुमनोप्सरसो व्यधुस्तम्। येनादधे स्फुटसदाविनीविष्टयोगस्तीर्थकरोपि हृदये परमाणु चित्तम् ।।१८।।
__मेरुश्रृङ्गे च यत्स्नात्रं जगद्भर्तुः सुरैः कृतम्। बभूव तदिहास्त्वेतदस्मत्करनिषेकतः।।"
ये श्लोक बोलते हुएं सभी स्नात्र कराने वाले उसी समय जिनबिम्ब पर कलशों से अभिषेक करें और अन्तिम श्लोक पुन-पुनः बोलकर जिनस्नात्र करें - इस प्रकार स्नात्रविधि पूर्ण होने पर धूप-चूर्ण से वासित कोमल वस्त्र से जिनबिम्ब को पोंछे। तत्पश्चात् निम्न दो छंदों द्वारा बिम्ब पर कस्तूरी, कुंकुम, कर्पूर एवं चंदनादि का विलेपन करे -
“कस्तूरिकाकुंकुमरोहणद्रुः कर्पूरकक्कोलविशिष्टगन्धम् । विलेपनं तीर्थपतेः शरीरे करोतु संघस्य सदा विवृद्धिम् ।।१।। तुराषाट्स्नात्रपर्यन्ते विदधे यद्विलेपनम्। जिनेश्वरस्य तद्भूयादत्र बिम्बेऽस्मदादृतम् ।।२।।"
तत्पश्चात् निम्न दो छंदों द्वारा बिम्ब की पुष्पमाला आदि से पूजा करें -
"मालतीविचकिलोज्ज्चलमल्लीकुन्दपाटलसुवर्णसुमैश्च। केतकैर्विरचिता जिनपूजा मंगलानिसकलानि विद्ध्यात् ।।१।।
___ स्नात्रं कृत्वा सुराधीशैर्जिनाधीशस्य वर्मणि। यत्पुष्पारोपणं चक्रे तदस्त्वस्मत्करैरिह ।।"
___तत्पश्चात् निम्न दो छंदों को बोलते हुए बिम्ब को मुकुट, हार, कुंडल, आभूषण आदि पहनाएं -
_ “कैयूरहारकटकैः पटुभिः किरीटैः सत्कुण्डलैर्मणिमयीभिरथोर्मिकाभिः।
बिम्बं जगत् त्रयपतेरिह भूषयित्वा पापोच्चयं सकलमेव निकृन्तयामः।।१।।
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