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________________ आचारदिनकर (खण्ड-३) 124 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान नमामि तं जिनेश्वरं सदाविहारिशासनं। सुराधिनाथमानसे सदाविहारिशासनम् ।।" इन छंदों द्वारा कुसुमांजलि दें। तत्पश्चात् निम्न छंद बोलें - "प्रकटमानवमानवमण्डलं प्रगुणमानवमानवसंकुलम्। नमणिमानवमानवरं चिरं जयति मानवमानवकौसुमम् ।। इस छंद द्वारा बिम्ब पर माला चढ़ाएं। पुनः शक्रस्तव का पाठ करें तथा “ऊर्ध्वायो' छंदपूर्वक धूप-उत्क्षेपन करें। पुनः हाथ में कुसुमांजलि लेकर जगती छंद के राग में निम्न छंद बोलें - "बहुशोकहरं बहुशोकहरं कलिकालमुदं कलिकालमुदम् । हरिविक्रमणं हरिविक्रमणं सकलाभिमतं सकलाभिमतम्।। कमलाक्षमलं विनयायतनं विनयायतनं कमलाक्षमलम् । परमातिशयं वसुसंवलभं वसुसंवलभं परमातिशयम् ।। अतिपाटवपाटवलं जयिनं हतदानवदानवसुं सगुणम् । उपचारजवारजनाश्रयणं प्रतिमानवमानवरिष्टरुचम् ।। सरमं कृतमुक्तिविलासरमं भयदंभयमुक्तमिलाभयदम् । परमंव्रजनेत्रमिदं परमं भगवन्तमये प्रभुताभगवम्।। ___ भवभीतनरप्रमदाशरणं शरणं कुशलस्यमुनीशरणम्। शरणं प्रणमामि जिनं सदये सदये हृदि दीप्तमहागमकम् ।।" इन पाँच छंदों द्वारा कुसुमाजंलि दें। तत्पश्चात् निम्न छंद बोलें "आशातना या किल देवदेव मया त्वदर्चारचनेऽनुषक्ता। क्षमस्व तां नाथ कुरु प्रसादं प्रायो नराः स्यु प्रचुरप्रमादाः।। इस छंद द्वारा बिम्ब के (समक्ष) अंजलि बद्ध करके अपराधों की क्षमापना करें। पुनः शक्रस्तव का पाठ करें तथा “ऊर्ध्वायो" छंदपूर्वक धूप-उत्क्षेपण करें। पुनः हाथ में कुसुमांजलि .लेकर निम्न छंद बोलें - "करकलितपालनीयः कमनीयगुणैकनिधिमहाकरणः। करकलितपालनीयः स जयति जिनपतिरकर्मकृतकरणः ।। विनयनयगुणनिधानं सदारतावर्जनं विसमवायम्। वन्दे जिनेश्वरमहं सदारतावर्जनं विसमवायम् ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001720
Book TitlePratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size16 MB
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