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आचारदिनकर (खण्ड-३) 109 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान
"ऊँ स्थावरे तिष्ठ-तिष्ठ स्वाहा।' चलप्रतिमा पर पुनः निम्न मंत्र का न्यास करें - "ॐ जये श्रीं ह्रीं सुभद्रे नमः।"
तत्पश्चात् पद्ममुद्रा एवं निम्न मंत्रपूर्वक रत्नासन को स्थापित करें।
"इदं रत्नमयमासनमलंकुर्वन्तु इहोपविष्टा भव्यानवलोकयन्तु हृष्टदृष्टयादिजिनाः स्वाहा।"
इसके बाद निम्न मंत्रपूर्वक गन्ध, पुष्प एवं धूप का दान करें
"ऊँ ये गन्धान् प्रतीच्छन्तु स्वाहा। ऊँ ये पुष्पाणि प्रतीच्छन्तु स्वाहा। ॐ यं धूपं भजन्तु स्वाहा ।"
तत्पश्चात् मंत्रपाठपूर्वक तीन बार पुष्पांजलि प्रक्षिप्त करें तथा निम्न मंत्र बोलें -
“ॐ ये सकलसत्वालोककर अवलोकय भगवन् अवलोकय स्वाहा।
फिर परदे को हटाकर सर्वसंघ एकत्रित होकर गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, वस्त्र एवं अलंकार द्वारा महापूजा करे। तत्पश्चात् मोरण्ड, सुकुमारिका आदि नैवेद्य चढ़ाएं, लूण (राई) एवं आरती उतारें। फिर निम्न मंत्रपूर्वक बिम्ब के आगे भूतबलि दें -
“ऊँ हों भूतबलिं जुषन्तु स्वाहा।।
इसके बाद गुरु संघसहित चैत्यवंदन करें। तत्पश्चात् पुनः श्रुतदेवी, शान्तिदेवी, क्षेत्रदेवता, अम्बिकादेवता एवं समस्त वैयावृत्त्यकर देवता के आराधनार्थ कायोत्सर्ग एवं स्तुति पूर्व की भाँति ही करें। फिर प्रतिष्ठादेवी के आराधनार्थ कायोत्सर्ग करके निम्न स्तुति बोलें -
“यधिष्ठिताः प्रतिष्ठाः सर्वाः सर्वास्पदेषुनन्दन्ति। श्री जिन बिम्बं सा विशतु देवता सुप्रतिष्ठिमिदं ।।"
तत्पश्चात् नमस्कार मंत्रपूर्वक शक्रस्तव बोलकर शान्तिस्तव बोलें। फिर गुरु संघ सहित मंगल गाथापाठपूर्वक अक्षत की अंजलि से बधाएं। मंगलगाथा का पाठ निम्न है -
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