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________________ कषाय के भेद १३१ प्रत्याख्यानावरण कषाय का उदय पूर्ण रूप से विषय कषाय, भोग-उपभोग से विरत नहीं होने देता। जम्बू स्वामी दो जन्म पहले शिवकुमार के भव में मुनि सागरदत्त के दर्शन कर प्रव्रज्या हेतु उत्सुक बने । शिवकुमार ने मन में श्रमण बनने हेतु संकल्प लिया और पिता राजा पद्मरथ के समीप पहुँचे। दीक्षा हेतु स्वीकृति की प्रार्थना की। नृपति का पितृ-हृदय दहल उठा । पिता का वात्सल्य से भरा हृदय वियोग की कल्पना करके भी कम्पित हो गया। नेत्र भींग गये । क्षण भर मौन का साम्राज्य स्थापित हो गया। तत्पश्चात् काँपती आवाज में राजा पद्मरथ ने मौन भंग किया- 'शिव! तुम जानते हो तुम्हारा विरह हमारे लिए असह्य है । हम मरणपर्यन्त तुम्हें संन्यास की स्वीकृति नहीं दे सकेंगे - ऐसा हमारा मन कहता है । ' इतिहास कहता है शिवकुमार ने आठ दिन अन्न-जल का त्याग कर दिया; किन्तु राजा का निर्णय नहीं बदला। अन्त में दृढ़धर्मा श्रावक के निवेदन पर शिवकुमार ने बारह वर्ष तक बेले- बेले - पारणा आयम्बिल का तप किया किन्तु प्रत्याख्यानावरण कषाय का उदय उन्हें संयम जीवन, पूर्ण विरतिमय जीवन स्वीकार करने में बाधक बना रहा । इस प्रत्याख्यानावरण कषाय की अधिकतम काल मर्यादा श्वेताम्बर परम्परानुसार१३२ चार मास एवं दिगम्बर परम्परानुसार ३३ पन्द्रह दिन बताई गई है। यह कषाय चार महीने से अधिक उदय नहीं रह सकती । इस काल में साधक अपने दोष का प्रायश्चित एवं अन्य के अपराध को क्षमादान देता है। चातुर्मासिक प्रतिक्रमण का उद्देश्य यही है कि अविरति रूप अप्रत्याख्यानी कषाय का उदय न हो। - संज्वलन कषाय संज्वलन कषाय के उदय से कषायभाव की मन्दतम परिणति, हिंसादि पापों से पूर्ण विरति, पदार्थों में अल्पतम रति- अरति तथा साधना के मार्ग पर प्रगति होते हुए भी वीतरागता की अभिव्यक्ति नहीं हो पाती। यह कषाय वीतरागता में बाधक है। ४३ भगवान् महावीर के प्रथम शिष्य गौतम गणधर चौदह पूर्वों के ज्ञाता, चार ज्ञान के धारी थे । चौदह हजार श्रमण एवं छत्तीस हजार श्रमणियों के संचालक १३१. विशेषा. / गा. २९९२ १३२. चउमास. (आचा. / अ. २ / उ. १ / सू. १९० ) १३३. अद्धमासादी... (क. चू. / अ. ८ / गा. ८५ / सू. २२ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001719
Book TitleKashay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHempragyashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Kashaya
File Size11 MB
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