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________________ कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन रूप-माधुरी का पान करके 'वाह-वाह' बोल उठे। “राजन ! देवराज इन्द्र से जैसा श्रवण किया था, उससे कहीं अधिक है - आपका सौन्दर्य।" ब्राह्मण के इस कथन पर सनत्कुमार गर्वोन्मत्त हो उठे - ओ हो! आप हमारा सौन्दर्य निहारने आए हैं? हे विप्रो! अभी क्या देखते हो? जब वस्त्राभूषणों से सुसज्जित होकर सभा में हमारा आगमन हो - तब इन आँखों को खुली रखना। चक्रवर्ती रूप-मद से छलछलाते जब राजसभा में प्रविष्ट हुए; तब दोनों ब्राह्मण को देख गर्व भरी हँसी हँस पड़े- 'कहो! आप मौन क्यों हैं? ब्राह्मण रूपधारी देवों के चेहरे पर म्लानता छा गई - 'राजन! अब उस सुन्दरता में दीमक लग चुकी है। आपको विश्वास न हो तो स्वर्णपात्र में थूक कर देख लीजिए - कितने कीड़े कुलबुला रहे हैं?' चक्रवर्ती देह-नश्वरता के चिन्तन में खो गए। वैराग्य पथ के पथिक बने! (घ) बल-मद-प्रत्येक मनुष्य की अपनी-अपनी शारीरिक संरचना होती है। किसी की देह सुगठित, बलिष्ठ होती है, किसी की देह निर्बल। अपने शौर्य, पराक्रम का अहंकार करना बल-मद है। इतिहास में अनेकों ऐसे उदाहरण मिलते हैं जिन्होंने अपने बल के मद में निर्दोष-निरपराधों पर कहर बरसा दिए। सम्राट अशोक २ ने कलिंग युद्ध में बस्तियों को श्मशान बना दिया था, रणक्षेत्र में लाशों के ढेर लगे थे, खून की नदियाँ बह चली थीं। अपनी विजय पर हर्षोल्लास से उन्मत्त बने सम्राट अशोक को जब भिक्षु उपगुप्त ने रणक्षेत्र का दृश्य दिखाया तो उनका हृदय पश्चात्ताप से भर उठा। आँखें नम हो गईं, सिर ग्लानि से झुक गया। अपने बल का उपयोग जनहानि नहीं, जनहित के लिए करने का संकल्प किया। (च) श्रुत-मद-आत्मा अनन्त ज्ञानादि गुणों से सम्पन्न है। प्रत्येक आत्मा में त्रिलोक एवं त्रिकालज्ञाता बनने की शक्ति छिपी है। इस आत्मशक्ति को विस्मृत कर जब अल्पज्ञान में अधिकता का बोध हो जाता है, तो मान को नष्ट करने में समर्थ ज्ञान ही मान का कारण बन जाता है। उपाध्याय यशोविजयजी २ व्याकरण, साहित्य, न्यायशास्त्र आदि सब शास्त्रों का अध्ययन कर षट्दर्शन के पारगामी बने। काशी में विद्याभ्यास कर ७२. कथा-संग्रह ७३. प्रियदर्शी यशस्वी सितारे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001719
Book TitleKashay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHempragyashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Kashaya
File Size11 MB
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