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________________ प्रकाशकीय कषाय जैनधर्म का एक पारिभाषिक शब्द है । वे मनोवृत्तियाँ जो आत्मा को कलुषित करती हैं, उन्हें जैन मनोविज्ञान की भाषा में कषाय कहा गया है; अतः जीव के सांसारिक बन्धन में जो मनोवृत्तियाँ कारणभूत हैं, उनमें कषाय का एक प्रमुख स्थान है। कषाय को पूर्णरूप से समझे बिना उस पर विजय पाना नितान्त दुष्कर है। साध्वी (डॉ.) हेमप्रज्ञाजी द्वारा रचित 'कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन' नामक यह पुस्तक इस विषय पर एक अधिकारिक कृति है । प्रस्तुत कृति में आपने न केवल कषाय की सूक्ष्म विवेचना की है अपितु उन्हें कर्मसिद्धान्त एवं गुणस्थान जैसे महत्त्वपूर्ण दार्शनिक सिद्धान्तों के परिप्रेक्ष्य में व्याख्यायित करते हुए कषाय-जय के विभिन्न उपायों को भी सुझाया है। हम साध्वी (डॉ.) हेमप्रज्ञाजी के अत्यन्त आभारी हैं; जिन्होंने उक्त कृति को तैयार कर प्रकाशनार्थ हमें दिया । पार्श्वनाथ विद्यापीठ के मानद निदेशक डॉ. सागरमल जैन के प्रति हम अपना आभार प्रकट करते हैं, जिन्होंने न केवल इस ग्रन्थ की मूल पाण्डुलिपि को आद्योपान्त पढ़ कर इसके प्रकाशन के लिए हमें प्रेरित किया, अपितु इसके लिए विद्वत्तापूर्ण 'प्रस्तावना' भी लिखी। पुस्तक में अपेक्षित सुधार एवं प्रकाशन व्यवस्था के लिए हम विद्यापीठ के प्रवक्ता डॉ. श्री प्रकाश पाण्डेय के भी आभारी हैं। आशा है, पुस्तक अध्येताओं एवं शोधार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001719
Book TitleKashay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHempragyashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Kashaya
File Size11 MB
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