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कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन २१
कषाय जय के परिणाम
१. त्याग (विसर्जन) की मनोवृत्ति के परिणाम- प्रामाणिकता, सापेक्ष व्यवहार, अशोषण।
२. शान्ति की मनोवृत्ति के परिणाम- वाक्-संयम, अनाक्रमण, समझौता, समन्वय।
३. समानता की मनोवृत्ति के परिणाम- सापेक्ष-व्यवहार, प्रेम, मृदु व्यवहार।
४. ऋजुता की मनोवृत्ति के परिणाम- मैत्रीपूर्ण व्यवहार, विश्वास। __ अतः आवश्यक है कि सामाजिक जीवन की शुद्धि के लिए प्रथम प्रकार की वृत्तियों का त्याग कर जीवन में दूसरे प्रकार की प्रतिपक्षी वृत्तियों को स्थान दिया जाये। इस प्रकार वैयक्तिक और सामाजिक दोनों ही जीवन की दृष्टियों से कषाय-जय आवश्यक है। उत्तराध्ययनसूत्र में कहा है, क्रोध से आत्मा अधोगति को जाता है और मान से, माया से अच्छी गति (नैतिक विकास) का प्रतिरोध हो जाता है, लोभ से इस जन्म और अगले जन्म दोनों में ही भय प्राप्त होता है। जो व्यक्ति यश, पूजा या प्रतिष्ठा की कामना करता है, मान और सम्मान की अपेक्षा करता है, वह व्यक्ति अपने मान की पूर्ति के लिए अनेक प्रकार के पाप-कर्म करता है और कपटाचार का प्रश्रय लेता है। ३ दुष्पूर्य लोभ की पूर्ति में लगा हुआ व्यक्ति सदैव ही दुःख उठाया करता है, अत: इन जन्ममरण रूपी वृक्ष का सिंचन करने वाली कषायों का परित्याग कर देना चाहिए।
कषाय-जय कैसे? - प्रश्न यह है कि मानसिक आवेगों (कषायों) पर विजय कैसे प्राप्त की जाये? पहली बात यह कि तीव्र कषायोदय में तो विवेकबुद्धि प्रसुप्त ही हो जाती है, अतः विवेक-बुद्धि से कषायों का निग्रह सम्भव नहीं रह जाता। दूसरे इच्छापूर्वक भी उनका निरोध सम्भव नहीं, क्योंकि इच्छा तो स्वतः उनसे ही शासित होने लगती है। पाश्चात्य दार्शनिक स्पीनोजा (Spinoza) के अनुसार आवेगों का नियंत्रण संकल्पों से भी संभव नहीं, क्योंकि संकल्प तो आवेगात्मक स्वभाव के आधार पर ही बनते हैं और उसके ही एक अंग होते हैं।४ तीसरे, आवेगों का निरोध भी मानसिक स्वास्थ्य की दृष्टि से अहितकर १. नैतिकता का गुरुत्वाकर्षण, पृ. २ २. उत्तराध्ययन, ९/५४ ३. दशवैकालिक, ५/२/३५ ४. स्पीनोजा इन दी लाईट ऑफ वेदान्त, पृ. २६६
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