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________________ कषाय-जय से अन्तश्चक्षुओं के समक्ष मंत्राक्षरों को देखने का प्रयत्न करने पर बहुत-सी बार मंत्राक्षर देदीप्यमान ज्योति फलक पर अंकित दिखाई देते हैं। जप - प्रवृत्ति से क्रोध, ईर्ष्या, आलोचना आदि दुष्वृत्तियाँ क्षीण होती हैं। १३७ ५. नाद श्रवण में चित्त लीन होने पर सहज शान्ति का अनुभव होता है। जप में बाह्य-ध्वनि एवं नाद में अन्तर्ध्वनि का अवलम्बन लिया जाता है । ' नीरवस्थान में ध्यानमुद्रा में आँखें बन्द करके, कान के छिद्रों को दोनों हाथों की अंगुलियों से बन्द करके अन्तर्ध्वनि को सुनने का प्रयास करना। अभ्यास में प्रगति होने पर कभी घुँघरू, घंट, शंख, बाँसुरी, मेघ गर्जन आदि की ध्वनियों जैसी ध्वनियाँ भी सुनाई दे सकती हैं। ६. आँख की कीकी और मन की गति में भी सम्बन्ध है। किसी चित्र या मूर्ति या अन्य पदार्थ पर निर्निमेष ( आँख की पलक झपकाये बिना) दृष्टि रखना, त्राटक है।' निश्चित समय अपलक आँखों से देखने के पश्चात् आँख बन्द करके भृकुटि-स्थान पर उस चित्र को देखने का प्रयास करना । मूल चित्र के तेजोमय प्रतिबिम्ब को कुछ देर तक देखने के पश्चात् पुनः मूल चित्र पर दृष्टि - निक्षेप करना । - ७. विचारों का श्वासोच्छ्वास से सीधा और गहरा सम्बन्ध है। श्वासोच्छ्वास की गति जितनी मन्द और लयबद्ध होगी, मन उतना शान्त होगा। क्रोधावस्था में श्वास की गति तीव्र और अनियमित हो जाती है। अतः चित्त स्थिति में परिवर्तन के लिए श्वास- गति को मन्द करने का प्रयास करना । ८. विचार प्रवाह का निरीक्षण चित्त-शान्ति का एक सशक्त साधन है । क्रोध कैसे प्रारम्भ हुआ ? कहाँ से प्रारम्भ हुआ? मूल उद्गम स्रोत कौन-सा कषाय है ? ऐसे प्रश्नों के उत्तर ढूँढ़ते जाने से मन पर परिस्थिति का प्रभाव समाप्त हो जाता है। विचारों का परिवर्तन स्वाध्याय, चिन्तन, अनुप्रेक्षा आदि के माध्यम से होता है। ९. हम दोषी हैं, तो क्रोध का कारण ही नहीं है। यदि वर्तमान में हमारा दोष हमें दिखाई नहीं देता; तो कहीं अतीत में हमारी भूल रही है। अशुभ कर्मोदय के अभाव में अपमान, तिरस्कार आदि का प्रसंग बनेगा नहीं । दुःख देने वाला बाह्य निमित्त है, अन्तरंग में हमारा कर्मोदय है। कर्म विषय जानने वाला ८. वही / पृ. ९. वही / पृ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001719
Book TitleKashay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHempragyashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Kashaya
File Size11 MB
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