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________________ १२६ कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन (२) विनय : मान-परिवर्जन ज्ञानादि गुणों का बहुमान करना तथा गुरुजनों के प्रति आदर या सम्मान भाव रखना-विनय तप है। १६४ विनयशील गुरुजनों के निर्देश का अतिक्रमण नहीं करता। महापुरुषों की वाणी में शंका नहीं करता। विनयी के भीतर एक विकल्प भी स्फुरित नहीं होता। यदि विकल्प पैदा हो, तो परम विनयी नहीं। विनयी परिस्थिति को सहजता से स्वीकार करता है। प्रसंग या परिस्थिति को लेकर वह कोई भी अच्छा या बुरा अभिप्राय नहीं देता। अभिप्राय न देना यह कषायमन्दता बिना संभव नहीं। अहंकार-मन्दता के अभाव में विनय-तप असंभव है। भय अथवा लोभ कषाय के वशीभूत होकर नम्रता प्रकट करना तप नहीं है; अपितु मान-कषाय पर कुठाराघात कर प्रत्येक प्रसंग में सहज रहना तप है। चण्डरुद्राचार्य'६५ को कन्धे पर बिठाकर जंगल पार करते हुए नूतन मुनि ने गुरु के समस्त कर्कश वचनों एवं ताड़ना-तर्जना पर परम विनय रखा, भीतर में एक असत् विकल्प उत्पन्न नहीं हुआ, मान-मर्दन होने पर भी, क्रोध-सर्प फुफकार नहीं उठा तो समस्त कषाय क्षय करके कैवल्य ज्ञान प्राप्त किया। (३) वैयावृत्य : देहासक्ति त्याग __शरीर-मोह, वस्तु-मोह, व्यक्ति को वैयावृत्य-तप नहीं करने देता। किसी की सेवा के लिए शरीर को तत्पर करना, समय-शक्ति का उपयोग करना तीव्र मोह में संभव नहीं है। सुविधा का लोभ, मान का घनत्व त्यागकर साधक अन्य साधकों की जरूरत में अपने तन-मन को लगाता है। कहा है आचार्यादि की सेवा-सुश्रुषा वैयावृत्य-तप है। १६६ ग्लान, वृद्ध आदि की उचित सार-संभाल इसी तप के अन्तर्गत है। नंदीषेण मुनि का संकल्प था'६७ ग्लान सेवा की परीक्षा हेतु दो देव मुनि का रूप धारण कर नगर के बाहर आ गये। एक मुनि नंदीषण को कटुवचन से प्रताड़ित करने लगे; 'अहो! प्रशंसनीय है, तुम्हारा संकल्प। तुम यहाँ आहारलुब्ध बने हो, नगर के बाहर एक ग्लान मुनि तड़प रहे हैं।' कर्कश-वचन श्रवण करके भी क्रोधाविष्ट नहीं होने वाले नंदीषेण मुनि तुरंत आहार छोड़कर उठ खड़े हुए। दो उपवास का पारणा था; किन्तु शरीर-ममत्व हावी नहीं हुआ। ग्लान मुनि को कन्धे पर बिठाकर नगर की ओर चल पड़े। ग्लान-मुनि ने ताड़ना-तर्जना प्रारम्भ कर दी; पर नन्दीषेण मान-विजेता बनकर चलते रहे। मुनि की अति दुर्गन्धित विष्टा शरीर पर गिरने लगी; लेकिन नन्दीषेण के मन १६४. उत्तराध्ययनसूत्र/३०/३२ १६६. उत्तराध्ययनसूत्र ३०/३३ १६५. उत्तराध्ययनसूत्र/१/टीका १६७. कथा साहित्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001719
Book TitleKashay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHempragyashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Kashaya
File Size11 MB
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