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________________ १२० कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन हैं-१३३ (१) क्षुधा/भूख (२) पिपासा प्यास (३) शीत/ठंड (४) उष्ण/गर्मी (५) दंशमशक/मच्छर आदि का उपद्रव (६) नग्नता/वस्त्रहीनता (७) अरति अरुचि (८) स्त्री/विजातीय आकर्षण (९) चर्या विहार (१०) निषद्या/दृठ आसन (११) शय्या सोने का स्थान (१२) आक्रोश/अप्रिय वचन (१३) वध/मारपीट (१४) याचना/भिक्षावृत्ति (१५) अलाभ/अभीष्ट वस्तु की प्राप्ति न होना (१६) रोग/वेदना (१७) तृणस्पर्श तृण की तीक्ष्णता का अनुभव (१८) मल/शारीरिक मैल (१९) अज्ञान (२०) अदर्शन (२१) सत्कारपुरस्कार (२२) प्रज्ञा/बुद्धि वैभव। स्थूल संज्वलन कषाय के उदय में इन बाइस परीषहों की संभावना होती है। सूक्ष्म लोभकषाय से युक्त दसवें गुणस्थान में चौदह परीषह ही संभव होते हैं- मोहोदय का अभाव होने से अरति, सत्कार, पुरस्कार, आक्रोश, निषद्या, नग्नत्व, याचना, स्त्री, अदर्शन ये आठ परीषह नहीं होते हैं। १३४ चारित्र- आत्मिक शुद्ध दशा में स्थिर रहने का प्रयत्न करना, चारित्र है। समत्व भाव आरूढ़ होकर साधक कषाय-जय की साधना करता है। चारित्र पाँच हैं-१३५ (१) सामायिक (२) छेदोपस्थापनीय (३) परिहारविशुद्धि (४) सूक्ष्म-सम्पराय (५) यथाख्यात्। प्रथम तीन चारित्र में अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यानी एवं प्रत्याख्यानावरण कषाय का अभाव एवं संज्वलन कषाय का सद्भाव होता है। सूक्ष्म-सम्पराय चारित्र में सूक्ष्म लोभ कषाय का उदय एवं यथाख्यात् चारित्र अकषाय अवस्था है। निर्जरा : कषाय का निर्गमन निर्जरा अर्थात् जर्जरित कर देना, झाड़ देना। आत्मा में कर्म एवं कषाय आसक्तियों को तोड़ देना कहा है। जिस प्रकार किसी सरोवर के जल स्रोतों को बन्द कर दिया जाए और उसके अन्दर रहे हुए जल को उलीचा जाए तथा ताप से सुखाया जाए तो वह विस्तीर्ण तालाब भी सूख जाता है; उसी प्रकार आत्मारूपी सरोवर में कर्म एवं कषायरूपी पानी के आगमन द्वारों को बन्द कर देना - संवर और तप द्वारा कर्म एवं कषाय क्षय करना, आसक्तियाँ जर्जरित कर देना निर्जरा है। १३६ १३३. वही। १३४. तत्त्वार्थसूत्र/अ. ९/सू. १०-१२ १३५. वही/अ. ९/सू. १८ १३६. (अ) उत्तराध्ययनसूत्र/अ. ३०/गा. ५-६ (ब) आचारांग/१/४/४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001719
Book TitleKashay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHempragyashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Kashaya
File Size11 MB
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