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________________ कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन समिति- विवेकपूर्वक प्रवृत्ति का नाम समिति है। १२ जब कषायावेग होता है, तब विवेक खो जाता है। साधक का प्रत्येक आचरण संयत, विवेकपूर्ण होता है। आत्मचेतना की जागृति के साथ जो पंच इन्द्रियों के विषय कषायोदय में संलग्न नहीं होते, वे ही संवर का साधक हैं। दशवैकालिकसूत्र में शिष्य ने गुरु से प्रश्न किया है-११३ । कहं चरे, कहं चिठू, कह भासे कहं सये। कहं भुंजतो भासंतो, पावं कम्मं न बंधइ।।' गुरुदेव! मैं कैसे चलूँ, कैसे सोचूँ, कैसे बै→, कैसे सोऊँ, कैसे खाऊँ, कैसे बोलूँ ; जिससे पापकर्मों का बन्ध न हो। प्रत्युत्तर में गाथा दी गई है-११४ ___ 'जयं चरे, जयं चिढ़े, जय भासे, जयं सये। जयं भुंजतो, भासंतो, पावं कम्मं न बंधइ।।' विवेक से चलो, विवेक से सोचो, विवेक से बैठो, विवेक से सोओ, विवेक से खाओ, विवेक से बोलो ; जिससे पाप कर्मों का बन्ध न हो। विवेकपूर्वक आचरण समिति है। राग-द्वेष की मन्दता के अभाव में प्रत्येक क्रिया में विवेक दिखाई नहीं देता। समिति के पाँच प्रकार हैं-११५ शान्तचित्त से चलना, गमनागमन में विवेक रखना, भूत-भविष्य की स्मृति- कल्पनाओं में न डूबकर वर्तमान क्षण में उपयोग रखना, ईर्या-समिति है। क्रोधादि वश असत्य, अनर्गल न बोलकर भाषा-विवेक रखना भाषा-समिति है। स्वादलोलुपता, रसपोषण को महत्त्व न देकर आहार-पानी में निर्दोष पदार्थ स्वीकार करना एषणा-समिति है। वस्तु उठाने, रखने में जीव-मैत्री का भाव रखकर विवेकमय प्रवृत्ति करना आदान-भडं-मत्त निक्षेपण-समिति है। मल-मूत्र-श्लेष्मादि निस्सार तत्त्व फेंकते समय जीव हिंसा न हो ऐसा ध्यान रखकर क्रिया करना मलमूत्रांदिप्रतिस्थापना (उच्चारपासवण खेल जलसंघाण पारिणावणिया) समिति है। इन समितियों का सम्यक् परिपालन कषाय मन्दता में ही संभव है। धर्म- 'वत्थुसहावो धम्मो वस्तु का स्वभाव धर्म कहलाता है। धर्म की उपलब्धि में कारणभूत साधनों के भी उपचार से धर्म कहा जाता है। धर्म के ११२. आचारांगसूत्र/१/५/४ ११३. दशवैकालिकसूत्र अ. ४/गा. ७ ११४. वही/अ. ४/गा. ८ ११५. (अ) तत्त्वार्थसूत्र/अ. ९/सू. ५ (ब) उत्तराध्ययनसूत्र/अ. २४/गा. १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001719
Book TitleKashay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHempragyashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Kashaya
File Size11 MB
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