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________________ ९६ कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन इन्द्रियों तथा मन के द्वारा जब विषयाभिलाषा में प्राणी निरत हो जाता है, तब वे विषय उसके लिए बन्धन का कारण बन जाते हैं। ४३ आचारांग के अनुसार कर्मबन्धन की मूलभूत प्रेरक विषयासक्ति ही है। उत्तराध्ययन में भी कामासक्ति को दुःखमूलक बताया गया है।" कहा गया है कि जिस प्रकार कछुआ खतरे के समय अपने अंग-प्रत्यंगों को समेट लेता है, उसी प्रकार साधक को भी विषयाभिमुख होती अपनी इन्द्रियों को आध्यात्मिक ज्ञान के द्वारा समेट लेना चाहिए।५ । मनोज्ञ-अमनोज्ञ विषयों में आसक्त होने वाला विनाश एवं पतन को प्राप्त होता है। एक-एक इन्द्रिय का विषय भी प्राणी को प्राण विनाशक संकट में डाल देता है, तो जहाँ पाँचों इन्द्रियों के सेवन में वृत्तियाँ तन्मय हों, ऐसे प्राणी की क्या दशा होती होगी? शास्त्रों में ऐसे उदाहरण मिलते हैं कि किस इन्द्रियविषयासक्ति से कौन-सा जीव विशेषतया दुःख प्राप्त करता है।" (१) स्पर्शेन्द्रिय- हस्तिनी के स्पर्श का लोभ जब प्रबल बनता है तब मदोन्मत्त, बलवान, वन में स्वेच्छया विहार करने वाला गजराज बंधनों में बंध जाता है, खिच्चरी नामक पक्षिणी मैथुन सुख के लोभ में फँसकर जब गर्भवती हो जाती है, तब वह प्रसव के लिए उद्यत होती है; किन्तु प्रसव कर नहीं पाती और तीव्र वेदना से मृत्यु को प्राप्त होती है। (२) रसेन्द्रिय- आटे की गोली में लुब्ध बनी मछली आटा देखती है, काँटा नहीं; वह काँटा गले में फँसकर प्राणहरण कर देता है। मरे हुए हाथी के शरीर पर बैठा हुआ; किन्तु नदी के वेग में पड़ा हुआ कौआ समुद्र में जा पहुँचता है। (३) घ्राणेन्द्रिय- कमल की सुगन्ध में फँसा भ्रमर संध्या होने पर कमल की पंखुड़ियों में कैद हो जाता है एवं प्रात: सरोवर पर आने वाले हाथियों के पाँव तले कुचला जाता है। रोटी की गंध के पीछे भागने वाला चूहा चूहेदानी में पकड़ा जाता है और जंगल में फिंकवा दिया जाता है। (४) चक्षुरिन्द्रिय- दीपक के प्रकाश को देख चंचलचित्त होकर पतंगा दीपशिखा का आलिंगन कर मृत्यु का वरण करता है। ४३. आचारांग/१/१/५ ४४. उत्तराध्ययन अ. ३२/गा. १९ ४५. (अ) दशवैकालिक/८/८० (ब) सूत्रकृतांग/१/८/१६ ४६. ज्ञानार्णव/प्र. १८/श्लो. १५१ ४७. सभाष्य तत्त्वार्थाधिगम अ. ६/सू. ६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001719
Book TitleKashay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHempragyashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Kashaya
File Size11 MB
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