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________________ ९२ कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन ३. योगात्मा-सशरीरी जीव की मन, वचन, काय की चंचल अवस्था विशेष। ४. उपयोगात्मा-ज्ञान एवं दर्शन गुण के आधार पर जीव का कथन विशेष। ५. ज्ञानात्मा-ज्ञान जानने की शक्ति। ६. दर्शनात्मा-सामान्य बोध ज्ञान की शक्ति। ७. चारित्रात्मा-जीव की क्रियात्मक शक्ति। ८. वीर्यात्मा-जीव की दानादि शक्ति। उपर्युक्त आठ प्रकारों में द्रव्यात्मा, उपयोगात्मा, ज्ञानात्मा, दर्शनात्मा, चारित्रात्मा और वीर्यात्मा- गुण आधारित भेद हैं। जीव के लक्षण हैं.२ 'णाणं च दसणं चेव, चरित्तं च तवो तहा। वीरियं उवओगो य, एयं जीअस्स लक्खणं' -ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, वीर्य एवं उपयोग जीव के लक्षण हैं। चंचलता के आधार पर योगात्मा एवं राग-द्वेषादि मनोविकारों के आधार पर कषायात्मा सम्बोधन दिया गया है। गतियों के आधार पर जीव के चार भेद किए गए हैं-२३ (१) देव, (२) मनुष्य, (३) तिर्यंच (पशु-पक्षी आदि); (४) नारक। जीव अनादि, शाश्वत एवं नित्य है; जैसा कि द्रव्य का स्वभाव है; गति, जाति, लिंगादि अपेक्षा जीव अनित्य, अशाश्वत एवं आदि है। भगवतीसूत्र में भगवान् महावीर ने गौतम स्वामी के प्रश्न का उत्तर देते हुए जीव को शाश्वत और अशाश्वत दोनों कहा "भगवन्! जीव शाश्वत है अथवा अशाश्वत?" "गौतम! जीव शाश्वत/ नित्य भी है तथा अशाश्वत अनित्य भी।" "भगवन्! जीव को नित्य एवं अनित्य कैसे कहा गया?" "गौतम! द्रव्य की अपेक्षा नित्य है, भाव की अपेक्षा अनित्य है।'' जमाली के साथ हुए प्रश्नोत्तर में भगवान् महावीर कहते हैं-५ हे जमाली! जीव शाश्वत है, तीनों कालों में ऐसा कोई समय नहीं है, जब यह जीव नहीं था, नहीं है अथवा नहीं होगा। इसी अपेक्षा से यह जीवात्मा नित्य, शाश्वत है। हे जमाली! जीव अशाश्वत है, क्योंकि नारक मर कर तिर्यंच, तिर्यंच मर कर मनुष्य होता है, मनुष्य मर कर देव होता है। इस परिवर्तन की अपेक्षा से यह जीवात्मा अनित्य है। २२. नवतत्त्वप्रकरण/गा. ५ २३. समवायांग/स. ४ २४. भगवती/७/२/२७३ २५. वही/९/६/३८७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001719
Book TitleKashay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHempragyashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Kashaya
File Size11 MB
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