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________________ ko वडमाणचरिउ कडवक सं. पृष्ठ मूल/हिन्दी अनु. उक्त सन्तानका नाम क्रमशः श्रीविजय, विजय और द्युतिप्रभा रखा गया. १४२-१४३ राजा प्रजापति मुनिराज पिहिताश्रवसे दीक्षित होकर तप करता है और मोक्ष प्राप्त करता है. १४४-१४५ ६. त्रिपृष्ठको अपनी युवती कन्याके विवाह हेतु योग्य वर खोजनेकी चिन्ता. १४४-१४५ ७. अर्ककीर्ति अपने पुत्र अमिततेज और पुत्री सुताराके साथ द्युतिप्रभाके स्वयंवरमें पहुँचता है. १४६-१४७ ८. श्रीविजय और सुतारामें प्रेम-स्फुरण. १४६-१४७ द्युतिप्रभा-अमिततेज एवं सुतारा-श्रीविजयके साथ विवाह सम्पन्न तथा त्रिपृष्ठ-नारायणकी मृत्यु. १४८-१४९ त्रिपृष्ठ-नारायणकी मृत्यु और हलधरको मोक्ष-प्राप्ति. १४८-१४९ त्रिपुष्ठ-नारायण नरकसे निकलकर सिंहयोनिमें, तत्पश्चात पुनः प्रथम नरकमें उत्पन्न. नरक-दुख-वर्णन. १५०-१५१ ५२. नरक-दुख-वर्णन. १५०-१५१ ६३. नरक-दुख-वर्णन. १५२-१५३ १४. अमिततेज-मुनि द्वारा मृगराजको सम्बोधन. सांसारिक सुख दुखद ही होते हैं. १५२-१५३ ६५. मृगराजको सम्बोधन. १५४-१५५ सिंहको सम्बोधन-करुणासे पवित्र धर्म ही सर्वश्रेष्ठ है. १५४-१५५ १७. सिंहको प्रबोधित कर मुनिराज गगन-मार्गसे प्रस्थान कर जाते हैं. १५६-१५७ १८. सिंह कठिन तपश्चर्याके फलस्वरूप सौधर्मदेव हुआ. १५६-१५७ वह सौधर्मदेव चारण-मुनियोंके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने हेतु उनकी सेवामें पहुँचा. १५८-१५९ छठी सन्धिकी समाप्ति. १५८-१५९ आशीर्वाद. १५८-१५९ सन्धि ७ १. धातकीखण्ड, वत्सादेश तथा कनकपुर-नगरका वर्णन. १६०-१६१ हरिध्वज देव कनकपुरके विद्याधर-मरेश कनकप्रभके यहाँ कनकध्वज नामक पत्रके रूपमें उत्पन्न होता है. १६०-१६१ राजकुमार कनकध्वजका सौन्दर्य-वर्णन. उसका विवाह राजकुमारी कनकप्रभाके साथ सम्पन्न हो जाता है. १६२-१६३ कनकध्वजको हेमरथ नामक पत्रकी प्राप्ति. १६२-१६३ ५. कनकध्वज अपनी प्रिया सहित सुदर्शन मेरुपर जाता है और वहाँ सुव्रत मुनिके दर्शन करता है. १६४-१६५ सुव्रत मुनि द्वारा कनकध्वजके लिए द्विविध-धर्म एवं सम्यग्दर्शनका उपदेश. १६४-१६५ ७. सुव्रत मुनि द्वारा कनकध्वजको धर्मोपदेश. १६६-१६७ कनकध्वजका वैराग्य एवं दुर्द्धर तप. वह मरकर कापिष्ठ स्वर्गमें देव हआ. १६६-१६७ ९. अवन्ति-देश एवं उज्जयिनी-नगरीका वर्णन. १६८-१६९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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