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________________ वड्डमाणचरिउ ( ३ ) आर्थिक भूगोल 'वड्रमाणचरिउ' एक तीर्थकर चरित काव्य है, अतः आर्थिक भूगोलसे उसका कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है, किन्तु महावीरके जन्म-जन्मान्तरोंके माध्यमसे कविने आर्थिक स्थितिपर भी कुछ प्रकाश डाला है। काव्यमें देश, नगर एवं ग्रामोंको समृद्धिका वर्णन है। वहाँके समृद्ध और लहलहाते खेत ( ९।१ ), गन्नोंकी बाड़ियाँ (३१), विविध प्रकारके यन्त्र ( ३३१), हाट-बाजार ( ३२), राजाओं एवं नगरवेष्ठियोंके वैभव-विलास. सिंचाईके साधनस्वरूप लबालब जलसे व्याप्त सरोवर, नदियाँ एवं वापिकाएँ ( ९।२), यान, वाहन तथा यातायातके लिए सुन्दर मार्ग ( ३।२), वन-सम्पदा आदि तत्कालीन आर्थिक स्थितिपर अच्छा प्रकाश डालते हैं। कविने सोने-चांदी, ताँबे तथा लाहेके बरतनों, तेल, घास व गुड़के व्यापारकी भी चर्चा की है। व्यापारियोंको वणिक् तथा सार्थवाहकी संज्ञाएँ प्राप्त थीं। (४) राजनैतिक भूगोल राजनैतिक भूगोलके अन्तर्गत द्वीप, क्षेत्र, देश एवं जनपद, नगर, ग्राम तथा खेटकी चर्चा रहती है। कविने प्रस्तुत ग्रन्थमें उक्त सामग्रीका पर्याप्त उल्लेख किया है। द्वीपोंमें-जम्बूद्वीप ( १०११३३९), धातकीखण्ड द्वीप ( ७१।१), वारुणि द्वीप ( १०।९।६), क्षीरवर द्वीप (१०।९।६), घृतमुख द्वीप ( १०।९।६ ), भुजगवर द्वीप (१०।९।६ ), नन्दीश्वर द्वीप (१०।९।६), अरुणवर द्वीप (१०।९।६), कुण्डल द्वीप (१०।९।७), अरुणाभास द्वीप (१०१९४७), शंखद्वीप (१०।९।७) एवं रुचकवर द्वीप ( १०९७ ) के उल्लेख मिलते हैं। ये सभी द्वीप पौराणिक हैं। कुछ शोध-प्रज्ञोंने जम्बूद्वीपकी अवस्थिति एशिया अथवा एशियामाइनरमें मानी है, किन्तु अभी तक सर्व-सम्मत शोध तथ्य सम्मुख नहीं आ पाये हैं। श्रमण-कवियोंने जम्बूद्वीपका प्रमाण १ लाख योजन माना है। इसी प्रकार अन्य द्वीपोंका भी उन्होंने सभी दृष्टिकोणोंसे विस्तृत वर्णन किया है। क्षेत्रों में-कविने भरत ( १।३५), ऐरावत (१०।१३), विदेह ( २।१०।१), पूर्वविदेह (८।१।१), हैमवत ( १०।१४।३ ), हैरण्यवत ( १०।१४।४ ), हरि (१०।१४।७ ) एवं रम्यक ( १०।१४१७ ) नामक क्षेत्रोंकी चर्चा की है । इनमें से प्रायः सभी क्षेत्र पौराणिक हैं। __ देश वर्णनोंमें-कविने पूर्वदेश ( १।५।६ ), पुष्कलावती ( २।१०।२ ), मगध (२।२२।६), सुरदेश ( ३।२१।२ ), कच्छ ( ३।३०।२,८।१।२ ), वत्सा ( ७।१।४ ), अवन्ति ( ७९।४ ) एवं विदेह ( ९।११३) नामक देशोंकी चर्चा की है। ___ नगरियोंमें-सितछत्रा ( १।४।१ ), पुण्डरीकिणी (२।१०।४ ), विनीता ( २११११५), कोसला (२।१६।६ ), मन्दिरपुर ( २।१८।८), शक्तिवन्तपुर ( २।१९।५), राजगृह ( २।२२।६ ), मथुरा ( ३।१७।२ ), अलकापुरी ( ३।१८।८,४।४।१४ ), पोदनपुर ( ३१२१३८), रथनूपुर (३।१९।१२ ), कनकपुर ( ७।१।१६), उज्जयिनी (७।९।१२ ), क्षेमापुरी ( ८1१।४), कुण्डपुर ( ९।१।१६ ) एवं कूलपुर ( ९।२०।१२) के उल्लेख मिलते हैं। शोध-प्रज्ञोंने इनको अवस्थितिपर कुछ प्रकाश डाला है किन्तु स्थानाभावके कारण, यहाँ तुलनात्मक पद्धतिसे प्रत्येक नगरकी स्थितिपर विचार कर पाना सम्भव नहीं है। २३. कुछ ऐतिहासिक तथ्य विबुध श्रीधर साहित्यकार होनेके साथ-साथ इतिहासवेत्ता भी प्रतीत होते हैं। उन्होंने अपनी रचनाओंमें कुछ ऐसे ऐतिहासिक तथ्य प्रस्तुत किये हैं, जो गम्भीर रूपसे विचारणीय हैं। उनमें से कुछ तथ्य निम्न प्रकार है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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