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________________ प्रस्तावना वस्त्रोंमें कविने दो प्रकारके वस्त्रोंके उल्लेख किये हैं-(१) पहिननेके वस्त्र तथा (२) ओढ़ने-बिछानेके वस्त्र । पहिननेके वस्त्रोंमें परिपट्ट तथा उससे निर्मित वस्त्र और कांची' अर्थात् लहंगा, चोली तथा कुरता नामक वस्त्रोंके उल्लेख मिलते हैं । ओढ़ने-बिछानेके वस्त्रोंमें नेत्त ( रत्नकम्बल ) तथा तूलं अर्थात् रूईसे बने गहे एवं तकियों के उल्लेख मिलते हैं। १३. वाद्य और संगीत कविने उत्सवों एवं मनोरंजनोंके आयोजनोंके समय विविध प्रकारके वाद्योंके उल्लेख किये हैं। उनमें कुछ वाद्योंके नाम तो परम्परा प्राप्त हैं और कुछ समकालीन नवीन । प्रस्तुत रचनामें उपलब्ध वाद्योंके नाम निम्न प्रकार है-तूर्य, तुरही', मन्दल, डमर, पटु-पटह, झल्लरे', काहले', दुन्दुभि२, शंख, वज्रांगे, घनरन्ध्र एवं वितत-ततं । १४. लोककर्म लोककर्मके अन्तर्गत शिल्पकार, लुहार, बढ़ई, कहार, उद्यान या वनपालके कार्य आते हैं । यद्यपि यह वर्ग समाजमें युगों-युगोंसे हीन माना जाता रहा है फिर भी उसके दैनिक अथवा नैमित्तिक कार्योंकी सम्पन्नता इस वर्गके बिना सम्भव नहीं थी। मनोज्ञ जिन-मन्दिर और उनपर करोड़ों स्वर्णकूट, रम्यवाटिकाएँ", रत्नमय कपाट व गोपुर, नीलमणियोंसे निर्मित भित्तियां, स्फटिक-मणियोंसे विजडित महीतले', सुन्दर वृक्षावलियां २२, गम्भीर-वापिकाएँ, 'विशाल परकोट, सिंहद्वारे", उत्तम निवास-भवना एवं प्रासादों आदिके निर्माण कार्य उक्त वर्गके विना असम्भव थे। लुहार दैनिक उपयोगमें आनेवाले कड़ाहे आदि वर्तनों तथा विविध प्रकारके शस्त्रास्त्रोंके निर्माण कार्य किया करते थे। वे भस्त्रा" (धौंकनी) से भट्रीको प्रज्वलित कर लोहेको गलाते थे तथा उससे वे लोहेकी आवश्यक सामग्रियोंका निर्माण करते थे। कहारोंका कार्य पालकी ढोना एवं अन्य सेवा-कार्य था। युद्धोंमें अन्तःपुर भी साथ में चला करते थे। उनकी पालकियोंको कहार ही ढोया करते थे। ९ उद्यानपाल अथवा वनपाल [आजकलके वनरखा] उद्यानों एवं वनोंका रक्षक तो रहता ही था, उसके साथ-साथ वह कुशल गुप्तचर एवं सन्देशवाहक भी होता था। १. बड्ढमाण, ८६७। २. वही, ८६।। ३. वही,८०६७। ४. वही, ८८ ५. वही, २०१४।१। ६. वही, २॥१४॥१॥ ७. वही,हा१शह। ८. वही,ह।१०।२० । ६. वही..ह१२।५ । १०. वही, ६।१४।११। ११. वही, ६।१४।११। १२. वही,हा२११४; १००१शह । १३. वही, १०।१८१७ । १४. वही, १०।१८।११। १५. वही, ८६५। १६. वड्ढमाण-८।५। १७. वही, २१२, ७३१३ । १८. वही, १।३।१०। १६. वही, १।४७। २०. वही, १२४११॥ २१. वही, १४।१३। २२. वहीं,११८।१२ । २३. वही, १।८३। २४. वही, ३।२।१। २५. वही, ३३२।६। २६. वही,६।२।। २७-२८. वही, ४.२१, १०।२४ । २६. वही, ४२१।१५। ३०. वही, २।४।३। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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