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समर्पण
जिनका सारा जीवन शौरसेनी-प्राकृतागमोंके उद्धार तथा प्रकाशनका सजीव इतिहास है, जिनके निर्भीक व्यक्तित्वमें श्रमण-संस्कृतिको निरन्तर अभिव्यक्ति मिलती रही है,
जिनका रोम-रोम श्रमण-साहित्यको सेवामें समर्पित रहा है,
जो नवीन पीढ़ीके साधन-विहीन उतिनीषुओंके लिए सतत कल्पवृक्ष रहते आये हैं,
-भारतीय-वाङ्मयके गौरव तथा बुन्देल-भूमिके उन्हीं यशस्वी सुत, श्रद्धेय पूज्य पण्डित फूलचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्रीकी
पुनीत सेवा में भ. महावीरके २५००वें निर्वाण-वर्षमें पुष्पित यह
प्रथम श्रद्धा-सुमन सादर समर्पित है।
विनयावनत
राजाराम जैन
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