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परिशिष्ट-(ग) बारह-सयई गयई कयहरिसइँ अट्टोत्तरं महीयले वरिसइँ। कसण-पक्खे अग्गहणे जायए तिज्ज दिवसे ससिवार समायए। घत्ता-बारह सयई गंथह कयई पद्धडिएहि रवण्णउ ।
जण-मण-हरणु-सुहु-वित्थरणु एउ सत्थु संपुण्णउ ॥१३॥ इय सिरिसुकमालसामि मणोहर चरिए सुंदरयर गुण-रयण णियरस-भरिए विबुह सिरि सुकइ सिरिहर विरइए साहु पीथे पुत्त कुमार णामंकिए सुकुमालसामि सव्वत्थ-सिद्धि गमणो णाम छट्ठो
परिच्छेओ समत्तो ॥ संधि ६॥
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