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________________ परिशिष्ट-१ (क) पासणाहचरिउ ( को ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण ) प्रशस्ति कइवर सिरिहर गुंफिय पासणाहचरिउ रचनाकाल-वि. सं. ११८९ मार्गशीर्ष कृष्णा ८ रविवार ] रचनास्थल-दिल्ली १११ पूरिय भुअणासहो पाव-पणासहो णिरुवम-गुण-मणि-गण-भरिउ । तोडिय-भव-पासहो पणवेवि पासहो पुणु पयडमि तासु जि चरिउ ॥ जय रिसह परीसह सहणसील जय अजिय परज्जिय-पर-दुसील । जय संभव भव-भंजण-समत्थ जय संवर-णिव-णंदण समत्थ । जय सुमइ समज्जिय सुमइ पोम जय पउमप्पह पह पहय पोम । जय जय सुपास पसु पास णास जय चंदप्पह पहणिय सणास । जय सुविहि सुविहि पयडण पवीण जय सीयल परमय सप्पवीण । जय सेय सेय लच्छी णिवास जय वासुपुज्ज परिह रिय वास । जय विमल विमल केवल-पयास जय जय अणंत पूरिय पयास । जय धम्म धम्म मग्गाणुवट्टि जय संति पाव महि मइय वट्टि । जय कुंथु परिक्खिय कुंथु सत्त जय अरि अरिहंत महंत-सत्त । जय मल्लि मल्लि पुज्जिय पहाण जय मुणिसुन्वय सुन्वय णिहाण । जय णमि णमियामर खयरविंद जय णेमि णयण-णिहयारविंद । जय पास जसाहय हीर हास जय जयहि वीर परिहरिय हास । घत्ता-इय णाण-दिवायर गुण-रयणायर वित्थरंतु मह मइ पवर। जिण कव्वु कुणंतहो दुरिउ हणंतहो सर कुरंग-मारण सवर ॥-पास० ११ 10 15 १।२ विरएवि चंदप्पहचरिउ चारु विहरते कोऊहलवसेण सिरि अयरवालकुल संभवेण अणवरय विणय पणयारहेण चिर चरियकम्म दुक्खावहारु। परिहच्छिय वाएसरि रसेण । जणणी वील्हा गन्मु[भ]वेण । कइणा बुह 'गोल्ह' तणूरहेण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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