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वड्डमाणचरिउ
[१०. १४. १४घत्ता-देव कुरु हे एयारह सहसढि सयई चेयाल ।।
एउ जे पमाणु उत्तर कुरुहे जिण वजरहि गुणालइ ॥२०७।।
जंबुदीव मज्झम्मि थक्कया
भोयभूमि छत्ताण छक्कया। तिण्णि कम्मभूमिओ खणिया कइयणेहिं कन्वेहि वणिया। पोमणामुहिमवंत सुंदरो
सहइ वारि पूरिउ सरोवरो । जोयणाइँ सयपंच वित्थरो
दह गहीरु दह सयई दीहरो। भणि उँ वप्प एयहो जे जेत्तओ हियई सक्क परियाणि तेत्तओ। सिहरे सीस तह पुंडरीयहो
भसल-पति-धुव-पुंडरीयहो । एउ माणु महपुंडरीयहो
दूणु हेम-मय-पुंडरीयहो। रुम्मिगिरि-सिरट्ठियहो वुत्तओ तिहिं गुणेहिं जुत्तउ णिहत्तओ। तासु दूणु केसरि सरोवरो
णील-सेल-संठिउ मणोहरो। वित्तिओ वि तिम्गिछि जाणिओ णिसढ सीसि ठिय तियस-माणिओ। तासु अद्ध महपोमु सण्णओ सज्जणव्व णिचं पसण्णओ। 'हिउ महाहिमवंतसेलए
कीलमाण-गिव्वाण-मेलए । सिरी-हिरी-दिही-कंति-वुद्धिया तहय लच्छि नामा पसिद्धिया। मज्झे ताह सुरवरहँ देविया
परिवसंति कीला-विभाविया। घत्ता-पोमहो महपोम तिगिंछ वि केसरिणाम-सरहो पुणु ।
महपुंडरीय-पुंडरियह वि णिग्गउ महस रियउ सुणु ॥२०८।।
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पढम गई वर गंग पुणु अवर सिंधुसरे पुणु रोहिणीरोहि धाराहि भरिय-दरि । पुणु रोहियासा सरी अवर हरि णाम पुणु अवर हरिकंत सीया वरा नाम । सीओयया अवर णारी वि णरकंत पुगु कणयकूलामरा तीरणिक्कंत । पुणु मुणिय णाणेण मई रुप्पकूलक्ख पुणु वि रत्तोयया जाणि सहसक्ख । ए अमरगिरि पंचकुल धरणिहर तीस वक्खारगिरि असिय खेत्ताई पणतीस । चउ गुणिय पणरह विहंग सरि पवहंति कुरु-दुमई दहवीस गयदंत दिप्पंति । वसह गिरि सत्तरि वि मीसियउ स उ जाणि वेयड्ढ गिरि होति तित्तियई मणि माणि ।
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१५. १. J. V. प्रतियोंमें यह पाठ है ही नहीं । १६. १. J. V. णाइ । २. J. V.°य ।
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