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________________ ९.८.१३] हिन्दी अनुवाद २०७ प्रकाशक तथा (८) मीन-युगलके देखनेसे वह चिन्ताओंको दूर करनेवाला होगा। (९) घट-युगलके देखनेसे वह संसार-भरमें ज्ञानधारी तथा (१०) सरोवरके देखनेसे वह लोगोंके हृदयोंको आकर्षित करनेवाला बनेगा। (११) सागर-दर्शनसे वह गम्भीर एवं धीर अन्तरंगवाला तथा (१२) मृगेन्द्रासन- १० के देखनेसे वह मिथ्यात्वरहित होगा, (१३) देवविमानके दर्शनसे वह सभा ( समवशरण ) में देव बनकर बैठेगा, (१४) फणीन्द्रालयके दर्शनसे वह सुलक्ष्मीका भोग करनेवाला होगा, (१५) मणिसमूहके दर्शनसे वह प्रशंसाका भागी एवं (१६) हुताशनके दर्शनसे वह कर्मवनको जला डालनेवाला बनेगा।" राजा सिद्धार्थके मुखसे स्वप्नोंके फलको क्रमशः सुनकर उसकी कान्ता-प्रियकारिणी १५ आनन्दलहरीसे भर उठी। त्रिलोकमें महिला-गणोंकी सारभूत महिलाओं द्वारा सेवित वह देवी शीघ्र ही जब अपने सुन्दर भवनमें गयी, तभी वह सुराधीश सुखकारी पुष्पोत्तर विमानसे चयकर पत्ता-रात्रिके समय प्रवर स्वप्नमें देवी-प्रियकारिणीके मुखमें गजके रूप में प्रविष्ट हुआ। ( उसे ) मुनिवरोंने कमलोंको जीतनेवाली श्रावण सम्बन्धी शुक्ल छट्ठी (तिथि) कही है ॥१७७|| प्रियकारिणीके गर्भ धारण करते हो धनपति-कुबेर नौ मास तक कुण्डपुरमें रत्नवृष्टि करता रहा उत्तरा-फाल्गुनी नक्षत्रके सम्पूर्ण होने तथा किरणों द्वारा अन्धकार-विशेषके नष्ट हो जानेपर, उसी समय आसनको कम्पित जानकर सुर-स्वामी-इन्द्रने अपने मनमें (प्रियकारिणीके गर्भावतरण सम्बन्धी वृत्तान्तको) जान लिया। उसने आकर अरहन्तकी माताका सम्मान किया और हर्षित-काय होकर अपने-अपने निवासको लौट गये। श्री, ह्री, धृति, लक्ष्मी, सुकीर्ति, मति आदि द्युति पूर्ण शरीरवाली देवियां वहाँ सेवा कार्य । हेतु आयीं और उन्होंने इन्द्रकी आज्ञासे कमलोंकी द्युतिको भी जीत लेनेवाले जिनेन्द्र-जननीके । चरणोंकी सेवा की। जिस प्रकार वर्षा ऋतुके नव ( आषाढ़ ) मासमें मेघ बरसते हैं, उसी प्रकार धनपति-कुबेर भी पुनः नौ मास तक रत्नवृष्टि करता रहा। गर्भ में स्थित रहनेपर भी वे भगवान् मति-श्रुत एवं अवधिरूप तीन ज्ञानोंसे मुक्त न थे। वे तीनों लोकोंको जानते थे। ( उचित ही कहा गया है कि ) उदयाचलकी कटनी-तलहटीमें स्थित रहनेपर भी रवि क्या तेजसे घिरा हुआ नहीं रहता ? गर्भके कारण उत्पन्न नानाविध दुस्सह दुखोंसे वह (प्रियकारिणी) पीड़ित नहीं हुई। जिनेन्द्र भी पंक-लेपसे रहित तथा दुर्लभतर आत्म-लक्ष्मीसे विभूषित थे। ( सच ही कहा है ) सरोवरमें जलके भीतर अमेय लीलाएँ करनेवाले मुकुलित कमलको क्या खेद होता है ? ___ घत्ता-प्रवर अंगवाला वह (गर्भगत प्राणी ) गर्भके भीतर रहता हुआ भी ज्ञानसे प्रेरित रहकर वृद्धिको प्राप्त करता रहा। उसी समय उस माता ( प्रियकारिणी ) के स्तन भी नीले मुख- ' वाले हो गये। वे ऐसे प्रतीत होते थे मानो मोहरूपी अन्धकार ही छोड़ रहे हों ॥१७८|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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