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________________ हिन्दी अनुवाद १५ तुमुलयुद्ध - राक्षस गण रुधिरासव पान कर कबन्धोंके साथ नाचने लगते हैं दुवई बाणोंसे शरीर के क्षत-विक्षत हो जानेपर भी आज्ञाकारी उत्तम घोड़े वेगपूर्वक युद्ध कर रहे थे। ऐसा प्रतीत होता था, मानो अभी-अभी मृतक हुए अपने स्वामियोंकी शूरवीरताको ही वे प्रकट कर रहे हों । ५. १६. १४ ] शत्रुने किसीके सिरपर लौहमय मुग्दर पटक दिया, तो भी विवश होकर रणरंग में अत्यन्त धीर उस वीरने अपना शरीर त्याग न किया । पैने अग्रभागसे रहित बाणने भी अभेद्य देहत्राण - ५ लौहकवचको भेदकर सुभटके प्राण ले लिये । ठीक ही है, दिनों ( आयु ) के पूर्ण हो जानेपर कौन किसको नहीं मार सकता ? किसी योद्धाने अपने शरीरसे ही हाथीपर सवार हुए स्वामीकी ओर आनेवाले शर-समूहोंसे उसकी रक्षा करते हुए उसे ( अपने शरीरको ) अस्त्राकार बना दिया । ठीक है, स्नेहवश व्यक्ति क्या-क्या नहीं कर डालता ? शूरवीर आपसमें एक दूसरेकी ओर देखकर और ( विपुल ) लज्जा, ( क्षत्रिय वंशका - ) अभिमान, (उत्तम) कुल प्रभुका प्रसाद तथा अपने १० पौरुषके प्रभावका स्मरण करते हुए शरीर के घावों से परिपूर्ण होनेपर भी वे शूरवीर रणक्षेत्रमें गिरे नहीं। हाथियों एवं घोड़ोंके अंग-प्रत्यंगों, ध्वजा-पताकाओं तथा अनेक रथवरोंके छिन्न-भिन्न हो जानेसे वह विकराल रणांगण एकदम पूर गया तथा भ्रमणशील खेचरोंके द्वारा वह अति दुर्गम हो गया । १२९ घत्ता - मनुष्यों की अंतड़ियों ( की माला ) से अलंकृत तथा रुधिररूपी आसवका पान १५ करनेके कारण मदोन्मत राक्षसगण सुभटोंके धड़ों के साथ-साथ निःशंक मनसे नाचने लगे ||१०९ ॥ १६ तुमुलयुद्ध-- अश्वग्रोव के मन्त्री हरिविश्व के शर-सन्धानके चमत्कार । वे त्रिपृष्ठको घेर लेते हैं दुबई इस प्रकार उन दोनों ही सेनाओंके हाथी, घोड़े, रथ एवं दर्पोद्धत भट प्रेतोंकी उदरपूर्ति के हेतु परस्पर में दुस्सह युद्ध करने लगे । इसी बीच सुखरूपी सागरमें क्रोधसे प्रज्वलित दिनकरके समान दीप्त, रथ-मण्डल में एकान्त में स्थित सेनापति रणमें उछलता हुआ धनुर्लताको धारण किये हुए महीतलमें 'हरिविश्व' इस नामसे सुप्रसिद्ध नीतिज्ञ मन्त्री चाप में निष्ठुर स्वभाववाली नाराच पंक्ति - बाण पंक्तिका सन्धान करता हुआ तुरन्त दौड़ा और 'मारो' - 'मारो' कहता हुआ जन-मनको विस्मित करता हुआ आगे बढ़ा । युद्धभूमिमें (उसके ) समान अन्य ( योद्धा न था ? ) । × × × × × नभस्तलमें वेगपूर्वक चलाते ५ १७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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