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५. १४. १४ ]
हिन्दी अनुवाद
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hot at विजय से सुशोभित तथा शत्रु- बाणों से क्षत-विशत योद्धागण निश्चल रूपसे गजेन्द्रोंपर बैठे हुए ऐसे सुशोभित हो रहे थे, मानो पर्वतके अग्रभागपर स्थित वे ऐसे मुँड़े हुए वृक्ष हों, जिनके १० पत्ते फाल्गुन मासकी धूपसे झड़ गये हों और जिनका मात्र त्वचासार ही शेष बचा हो । प्रचण्ड हाथियोंमें श्रेष्ठ गजराजकी सूँड़के कट जानेसे स्रवते ( चूते ) हुए लोहूका प्रवाह इस प्रकार सुशोभित हो रहा था, मानो अंजनगिरिके शिखर से गेरुमिश्रित झरना ही बह रहा हो । मूर्च्छाके दूर होते ही दुख-रहित होकर घावोंसे रिसते हुए शरीरवाले योद्धा बैरियोंसे पुनः जा भिड़े और जिस किसी प्रकार महाभटों द्वारा वे पकड़ लिये गये । कहिए कि शुभका संग्रह किसके द्वारा नहीं किया १५ जाता ? घावोंसे विह्वल शरीर देखकर उसे तलवारसे मार डालने की इच्छा होनेपर भी किसी वीर ने उसे मारा नहीं । ठीक ही कहा गया है, - 'दुर्गति में फँसे हुए शत्रुको महाभट मारते नहीं ।'
घत्ता - तीक्ष्ण प्रहारसे आकुलित मनवाले किसी योद्धा के मुखसे खून की कै हो रही थी । वह योद्धा इस प्रकार सुशोभित हो रहा था, मानो समरांगण में वह राजाओंके सम्मुख इन्द्रजाल - २० विद्याका प्रदर्शन कर रहा हो ॥ १०७॥
१४ तुमुलयुद्ध - आपत्ति भी उपकारका कारण बन जाती है।
दुवई
किसीके वक्षस्थलपर असह्य 'शक्ति' ( नामक विद्याकी मार ) पड़ी तो भी वह ( अर्थात् उस शक्ति नामक अस्त्रने ) उस ( शक्तिकी मार खाये ) योद्धा की शक्ति सामर्थ्यका अपहरण न कर सकी । निश्चय ही ( शास्त्रों में ) ऐसी कोई बात नहीं कही गयी है, जो ( युद्धकी इच्छा रखनेवाले ) वीरोंके दर्पंके विनाशका कारण बने ।
( नील कमलके समान), श्याम - आभावाली दन्तोज्ज्वला ( जिसकी नोंक उज्ज्वल है, १५ पक्षान्तर में, उज्ज्वल दाँतोंवाली ), चारु पयोधरोरु ( अच्छे पानीवाली और महान् ; पक्षान्तरमें सुन्दर स्तन एवं जंघाओंवाली ) कान्ताके समान असिलताने शत्रुको वक्षस्थलपर पड़ते ही उस त्रस्त विपक्षी भटको ऐसा मारा कि उसने शीघ्र ही अपने नेत्र निमीलित कर लिये । शत्रुके कुन्त द्वारा विदीर्ण हृदयवाले तथा उसके दुखसे पीड़ित होकर भी किसी योद्धाने क्रोधित होकर ( उसके पीछे ) दौड़ते हुए उस शत्रु-भटकी कण्ठ-कन्दलिमें इस प्रकार काटा, जिस प्रकार कि सर्प अपने फणसे ( अपने शत्रुको ) काट लेता है । किसी अन्य शत्रु-योद्धा के द्वारा अपने कौशल से सहसा ही, शिथिलता-पूर्वक हाथमें धारण की हुई छुरी उसके धारककी ही मृत्युका इस प्रकार कारण बना दी गयी जिस प्रकार कि दुष्ट अन्तरंगवाली अपनी ही भार्या दुश्चरित्र होकर ( फँसकर ) अपने ही पतिकी मृत्युका कारण बन जाती है। किसी भटने अपने जाने तथा दाहिनी भुजाके कट जानेपर भी बायें हाथसे करवाल धारण कर प्रहार करते हुए १० शत्रुको मार डाला । सच ही है-कभी - कभी आपत्ति भी उपकार करनेवाली हो जाती है । बाण द्वारा निहत अंगवाले घोड़े अपने सवारों द्वारा परित्यक्त कर दिये गये । हाथी भी घायल महावतों को छोड़-छोड़कर व्याकुल होकर भाग गये ।
दूसरेके चंगुल में कपोलके हत हो
घत्ता - जिस घोड़े के उत्तम कण्ठमें न तो हार था और न चामर ही, तथा जिसका आसन खाली था, ऐसे सिंहासनवाला वह ( घोड़ा ) हाथियोंको त्रस्त करता हुआ अपितु क्रिया से भी 'हरि' हो गया ॥ १०८ ॥
नाममात्रसे ही नहीं; २०
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