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५. १३.७] हिन्दी अनुवाद
१२५ । घत्ता-चिरकाल तक रणकी धुराको धारण करनेवाले मृतक हुए तेजस्वी नरनाथोंकी सूची तैयार करने हेतु वन्दीजनोंने उनका संक्षेपमें कुल एवं नाम पूछना प्रारम्भ कर दिया ।।१०५॥ १५
१२ तुमुल-युद्ध-अपने सेनापतिकी आज्ञाके बिना घायल योद्धा
मरनेको भी तैयार न थे
दुवई
हाथियोंकी मनोहारी लड़ाई हुई, उसमें आहत उनके गण्डस्थलोंसे उछलकर गिरे हुए गज मुक्ताओंसे वह रणश्री ऐसी प्रतीत हुई, मानो दिन में तारे ही निकल आये हों।
मुख्य भावका ध्यान करते हुए अपने ही हाथोंसे अनवरत रूपसे सुन्दर चापको चढ़ानेवाले योद्धा रणांगणमें किस प्रकार सुशोभित थे ? ठीक उसी प्रकार (सुशोभित थे), जिस प्रकार कि चित्रकार द्वारा भित्ति-लिखित चित्र ( सुशोभित होते हैं )। अर्थात् वे इतनी शीघ्रतासे बाणको ५ धनुषपर चढ़ाते और छोड़ते थे कि जिससे पासका भी व्यक्ति उनकी इस क्रियाको नहीं जान पाता था, इसीलिए वे चित्र-लिखित जैसे प्रतीत होते थे। दुःसह प्रहारोंकी पीड़ासे आकुल होकर भी कोई योद्धा तबतक प्राणोंको धारण किये रहा जबतक कि उसके स्वामीने उसे 'शत्रुजनोंकी दयापर जीवित रहनेसे क्या लाभ ?' इस प्रकारके वचन न कह दिये। चक्र द्वारा उच्छिन्न भू-भृकुटिसे भयानक शीशको बायें हाथमें पकड़कर उसने क्रोधित होकर सम्मुख आये हुए शत्रुको तलवारसे १० मारकर आश्चर्य-चकित कर दिया। जिस प्रकार शत्रुका दमन कर उसे चूर-चूर कर दिया जाता है, उसी प्रकार किसी भटने टूटी हुई धनुर्लताको अनर्थ एवं सन्तापकारी जानकर तोड़ताड़कर फेंक दिया तथा शत्रुके बाण द्वारा उच्छिन्न गुण ( रस्सी) वाले धनुषको अश्वभटों एवं गजभटों द्वारा उसी प्रकार छोड़ दिया गया, जिस प्रकार भ्रष्ट स्त्रीको छोड़ दिया जाता है। गहरी कीचड़ में फंसे चक्रवाले मणिजड़ित जिस दृढ़ रथपर नृपति बैठा था, वह बाणोंसे घायल हुए मनोहर १५ प्रवर-तुरंगों द्वारा जिस किसी प्रकार खींचा गया।
धत्ता-(युद्धकी ) निष्ठुर भूमिसे किसी योद्धाको मूलसे कटी हुई भुज़ाको लेकर गृद्ध आकाशमें उड़ गया। वह ऐसा प्रतीत होता था, मानो उस दुर्जेय वीर पुरुषकी जय एवं यशोगाथा ही सर्वत्र भ्रमण कर रही है ।।१०६॥
१३ तुमुल-युद्ध-घायल योद्धाओंके मुखसे हुआ रक्त वमन ऐन्द्रजालिकविद्याके समान प्रतीत होता था
दुवई ( मदोन्मत्त ) हाथीने ( किसी ) योद्धाको पटककर उसके बायें पैरको अपनी सूंडसे दृढ़तापूर्वक पकड़कर तथा उसके दायें पैरको चाँपकर यमराजके समान ही अपनी पूरी शक्तिपूर्वक उसे दो भागोंमें चीर डाला।
दुर्वार हाथीने किसी योद्धाको अपनी सूंडसे पकड़कर आकाशमें फेंक दिया। किन्तु वह ( योद्धा ) भी ( कम ) खिलाड़ी न था, वह ( ऊपरसे गिरकर ) अपनी कृपाणसे उसके कुम्भस्थलका उल्लासपूर्वक दलन करता हुआ सिंहके समान ही सुशोभित हुआ। करीन्द्रोंके तेजको भी निर्दलित कर देनेवाले युद्ध में योद्धागणोंके बाणोंसे आक्रान्त हो जानेपर हाथियोंने अपनी सूंड़ द्वारा शीतल जल-कणोंसे गुणाश्रित पदाति सेनाश्रित उन भटोंकी आपदाका निवारण किया। शत्रुओंपर
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