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३. ६.३]
हिन्दी अनुवाद किसी एक दिन राजा विश्वभूतिने आते हुए प्रतिहारीको काँपता हुआ देखा, तब वह वैराग्य-भावसे प्रेषित (प्रेरित ) मन होकर निश्चल-नेत्रोंसे विचार करने लगा कि-'इस लावण्य, ५ रूप एवं सौभाग्यधारी प्रतिहारीका शरीर तो चिरकाल तक मनोहारी रहा तथा श्रेष्ठ मानिनी महिलाओं द्वारा सम्मानित तथा कामिनियों द्वारा अवलोकित रहा है, किन्तु अब वही बलिबुढ़ापेके आ पड़ने और श्वेत बालोंके हो जानेके कारण यह कैसा परिभूत-(तिरस्कृत) हो गया है, और वही पुण्यराशि इस समय शोक-विह्वल है। सकल इन्द्रियाँ ही शक्ति कही गयी हैं, यद्यपि दृष्ट वद्धावस्थाने उसकी प्रवत्तिको नष्ट कर डाला है. तो भी वह अपने जीनेकी आ
करता है। १० इस बुड्ढेके मनमें तृष्णाकी प्यास बढ़ी हुई है। शिथिल भौंहोंपर दृष्टिको निरुद्ध करके पग-पगपर लड़खड़ाता हुआ दृष्टि झुकाये वह ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो पृथिवीपर कहीं गिरे हुए अपने यौवनको ही यत्नपूर्वक खोजता हुआ चल रहा हो ।
घत्ता-अथवा गहन कर्म-विपाकके फलस्वरूप संसाररूपी गहन वनमें मार्ग-भ्रष्ट होकर यह जीव दुखमें भी प्रेम उत्पन्न करना चाहता है, तब उसका कल्याण कहाँसे होगा ? ॥४३॥
राजा विश्वभूतिने अपने अनुज विशाखभूतिको राज्य देकर तथा
पुत्र विश्वनन्दिको युवराज बनाकर दीक्षा ले ली इस प्रकार वैराग्यसे युक्त होकर राजा विश्वभूतिने दुर्जेय कामदेवको जीतकर तथा राज्यको कर्म-विपाक-दुःखोंका बीज जानकर अपने अनुज विशाखभूतिको धरणीतलका समस्त राज्य अर्पित कर अपने पुत्रको युवराज-पदपर स्थापित कर सुन्दर महोत्सवपूर्वक गुणोंका पात्र बनकर संसाररूपी महान आपत्तिका विध्वंस करनेवाले श्रीधर मनिके चरणकमलोंमें प्रणाम कर अपने मनको निश्चलतर बनाकर तथा अजर-अमर पदरूपी सम्पदा के निमित्त, चार सौ नरेन्द्रोंके साथ ५ उसने दीक्षा ले ली और स्वसमय ( शास्त्र ) को शिक्षाका संग्रह एवं मनन करने लगा।
कल्पलतासे जिस प्रकार कल्पवृक्ष रम्य प्रतीत होता है तथा जिस प्रकार अग्निकी शिखामें सन्तप्त स्वर्णका वर्ण होता है, उसी प्रकार तथा क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर एवं कामरूप षड्वर्गरूपी शत्रुकी विजयसे युक्त, शक्तित्रयरूपी गुणोंके विस्तरणमें उद्यत, अपने वैभवसे शतमख-इन्द्रकी विभूतिको जीतनेवाला वह विशाखभूति भी अपनी नृपश्री से सुशोभित होने लगा। १०
बल, वीर्य, लक्ष्मी एवं नय-नीतिसे युक्त तथा श्रेष्ठ ऐरावत हाथीकी सैंडके समान दीर्घभुजाओंवाले उस युवराज विश्वनन्दिने अपने चाचाकी आज्ञाका उल्लंघन कर अपना स्थान (अलग) बनवाया।
घत्ता-अपने अनुरागको प्रकट करते हुए युवराजने एक ऐसे सुन्दर उपवनका निर्माण कराया जो मधुकरों एवं कृष्णवर्णा कोयलोंके मधुर रवोंसे गुंजायमान तथा सुन्दर पक्षियोंसे युक्त १५ दिखाई देता था ।। ४४ ॥
युवराज विश्ननन्दि द्वारा स्वनिर्मित नन्दन-वनमें विविध-क्रीड़ाएँ। विशाखनन्दि
का ईर्ष्यावश उस नन्दन-वनको हड़पनेका विचार ____ अन्य किसी एक समय विशाल चित्त, बन्दीजनोंको दान देनेवाला, सुन्दर कामिनियोंके साथ एकाग्रचित्तसे क्रीड़ाएँ करता हुआ तीक्ष्ण खड्गरूपी धेनु हाथमें धारण किये हुए बुद्धि श्रेष्ठ,
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