SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५ २. ४.६] हिन्दी अनुवाद २५ तेजस्विता एवं कुल-क्रमागत विक्रमसे युक्त उस राजाने चन्द्रमाके समान अपने सात्त्विक गुणोंसे न केवल पृथिवी-मण्डलको सिद्ध कर लिया था। अपितु दुर्जेय शत्रुगणोंको भी वशमें कर लिया था। इस प्रकार अपनी तीनों शक्तियों ( कोषबल, सैन्यबल एवं मन्त्रबल ) से उस राजाकी 'नृपश्री' दिन प्रतिदिन वृद्धिंगत होने लगी। घत्ता-उस राजाकी लज्जावती भार्या प्रियंकराने गर्भधारण किया, जिसके कारण उसके गण्डस्थल पाण्डुरवर्णके हो गये, पेट बड़ा होने लगा, पैरोंकी गति मन्थर हो गयी तथा स्तनोंके अग्रभाग कृष्ण वर्णके हो गये ।।२०।। राजा नन्दन को नन्दनामक पुत्रको प्राप्ति : वसन्त ऋतुका आगमन उस रानी प्रियंकरा ( की कोख ) से शुभ दिवसमें, सूर्योदयके होनेपर स्वामी (राजा नन्दन) लिए प्रियकारी सुन्दर 'नन्द' नामका पुत्र उत्पन्न हुआ। वह ऐसा प्रतीत होता था, मानो महालताका पल्लव हो । वह लम्बी भुजाओंवाला था । सौन्दर्यमें कामदेवरूपी राहुको ध्वस्त करनेवाला था। कान्तिमें वह चन्द्रमा तथा तेजस्वितामें सूर्यके समान था। गम्भीरतामें वह समुद्रके समान था। वह बैरी रूपी बाधाओंको रोकनेवाला था। जब दिन प्रतिदिन वह अपने साथियोंके साथ वृद्धिंगत हो रहा था कि उसी बीच फूलोंकी गन्ध लेकर उछल-कूद करते हुए वसन्तका आगमन हुआ । दक्षिण-वायु ( मलयानिल ) बहने लगी, मानिनियोंके मनमें दाह उत्पन्न होने लगी, तोते एवं कोयलें मधुर वाणी बोलने लगीं, काले-काले भौंरे डोलने लगे, कोरक वृक्ष रक्ताभ अंकुरोंसे युक्त होने लगे। कमलपुष्प केशरोंसे युक्त हो गये। मदनक ( दाडिम ?) पल्लवोंसे रम्य हो गये, रूख (वृक्ष)-पंक्तियां घाम (धूप ) को रोकने लगी, १० वह ऋतुराज झुकी हुई आम्र-मंजरियोंके बहानेसे मानो कामदेवकी आज्ञाको प्रदान करता हुआ, -वल्लरियोसे झमती तथा संगीत करती हुई भ्रमरियों तथा रतिक्रीड़ामें संलग्न कामिनियोंकी सिसकारियोंसे व्याप्त रात्रियोंसे युक्त था। वह कामरूपी कीर्तिके लिए ज्योत्स्नाके समान था। वह वसन्त ऋतु मनीश्वरोंकी वृत्तिके समान तथा हंस-पंक्तियोंको हँसानेवाला और कामी एवं मानीजनोंको शान्त करनेवाला था। घत्ता-इस प्रकार ललित, नवेली एवं फूली हुई बेलोंसे सुशोभित उस वनमें हर्षित होकर उन्नत भाल किये हुए तथा लीलापूर्वक विहार करते हुए, वनपालने-॥२०॥ वनपाल द्वारा राजाको वनमें मुनि प्रोष्ठिलके आगमनको सूचना वहाँ ( उस वन में वनपालने ) बैठे हुऐ मति, श्रुत एवं अवधि रूप तीन ज्ञानोंसे सुशोभित पोष्ठिल नामक एक मुनिराजको देखा। उनके चरण-कमलोंमें भावशुद्धिपूर्वक नमस्कार कर पूर्वाजित पापोंसे मुक्त हो गया। फिर वह ( वनपाल ) तुरन्त ही वहाँ पहुँचा, जहाँ सभाके मध्यमें वह नप विराजमान था। वनपालने द्वारपालके आदेशसे ( सभाभवनमें ) प्रवेश कर महीपतिके चरण-कमलोंमें नमस्कार कर उसे भव्यजनोंके मनोरथोंका संगम करानेवाले उन मुनिनाथका आगमन ५ जताया तथा उसे वसन्त-मासके पुष्पोंको दिखाकर विरहिणी-कामिनियोंका शोषण करनेवाले वसन्तऋतुके आगमनकी भी सूचना दी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy