SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रवचन-सारोद्धार ६७ अधोलोक तथा ऊपर ऊर्ध्वलोक है। ऊर्ध्वलोक देशोन सात रज्जु परिमाण है और अधोलोक कुछ अधिक सात रज्जु परिमाण है। मध्य में १८०० योजन ऊँचा तिर्यक्लोक है। आठ रुचक प्रदेश के समभूतल भाग से असंख्याता क्रोड़ योजन नीचे जाने पर रत्नप्रभा नरक पर्यंत चौदह रज्जु परिमाण वाले लोक का मध्यभाग है जो कि संपूर्ण ७ रज्जु परिमाण होता है ॥९०२-९०३-९०४ ॥ सर्वप्रथम नीचे एक शराव उलटा रखना । उस पर दूसरा शराव ऊर्ध्वमुख स्थापित करना पुन: उस पर तीसरा शराव अधोमुख रखना। इस प्रकार करने से जैसा आकार बनता है, लोक का वैसा ही आकार है। यह लोक धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय एवं जीवास्तिकाय रूप पंचास्तिकायमय है अर्थात् इन पाँचों से व्याप्त है ॥९०५ ॥ असत्कल्पना के द्वारा १४ रज्जु परिमाण लोक के खंडों की संख्या कितनी होती है? यह बताते .... सिद्धशिला-१४ १ विजय २ वैजयन्त ३जयन्त ४ अपराजित ५ सर्वार्थसिद्ध ५ अनुत्तर byom ६ौवेयक - कल्पातीत लोक - कल्पोपन्न --- २ ४ ५ -+६ लोकान्तिक न १२ देवलोक १ सौधर्म २ इशान ३ सनत्कुमार ४ माहेन्द्र ५ ब्रह्मलोक ६ लान्तक ७ महाशुक्र ८ सहस्त्रार ६ आनत १० प्राणत ११ आरण १२ अच्युत ६ लोकांतिक १ सारस्वत २ आदित्य ३ वह्नि ४ अरुण ५ गर्दतोय ६ तुषित ७ अव्याबाध ८ मरुत ६ अरिष्ट VARDaily → किल्बिषिक -- चर-स्थिर ज्योतिष त्रसनाड़ी → द्वीप-समुद्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy