________________
MORE
प्रकाशकीय
प्रवचनसारोद्धार जैनों का एक महत्त्वपूर्ण संकलन ग्रन्थ है। १२वीं शताब्दि की यह रचना साध्वाचार का एक संदर्भ ग्रन्थ भी है। यह अपने पूर्ण रूप में हिन्दी भाषा में अभी तक अननुवादित था। विदुषी आर्यारत्न श्री हेमप्रभाश्रीजी म.सा. ने यह भागीरथ प्रयत्न सफलतापूर्वक संपन्न किया और प्राकृत भारती अकादमी को प्रकाशन दायित्व दिया इसके लिए हम उनका आभार प्रकट करते हैं।
इस पुस्तक के प्रकाशन की योजना आठ वर्ष पूर्व ही निश्चित हो चुकी थी, किन्तु विभिन्न अप्रत्याशित व्यवधानों के कारण विलम्ब होता गया, पर यह अन्तराल व्यर्थ नहीं गया। इस बीच ग्रन्थ के संयोजन व आकार में वांछित परिवर्तन और संवर्धन होता रहा जिससे यह संभवतः आदर्श रूप बन सका। इस · महत्त्वपूर्ण संपादन-संशोधन कार्य में साहित्यवाचस्पति महोपाध्याय विनयसागरजी ने अपनी पूर्ण विद्वत्ता तथा लगन से योगदान दिया है। यद्यपि वे प्राकृत भारती परिवार के सदस्य हैं, उनके प्रति धन्यवाद प्रकट न करना कृपणता होगी।
प्रथम भाग में द्वार १ से ११० तक प्रकाशित हो चुके हैं। शेष १११ से २७६ द्वार इस दूसरे भाग में संयोजित किए गए हैं। अपने इस संपूर्ण आकार में विस्तृत विवेचन सहित यह संदर्भ ग्रन्थ अवश्य ही साधुवृन्द तथा सुधी पाठकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगा।
श्रमण समुदाय के लिए विशेष उपयोगी ग्रन्थ का पुष्प १२६ के रूप में प्रकाशन प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर व श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ ट्रस्ट, मेवानगर और सेवा मन्दिर, रावटी-जोधपुर के संयुक्त प्रकाशनों की कड़ी में हो रहा है। आशा है जैन साहित्य प्रकाशन के क्षेत्र में तीनों संस्थाओं की परस्पर सहयोग की यह परम्परा अक्षुण्ण बनी रहेगी।
देवेन्द्रराज मेहता
पारसमल भंसाली
अध्यक्ष नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ,
मेवानगर
श्रेणिक पारख
ट्रस्टी सेवा मन्दिर रावटी-जोधपुर
प्राकृत भारती अकादमी
जयपुर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org