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श्री जिन कुशलसूरि दादावाड़ी, पुणे । वि. सं. २०५४, फा. कृ. ३ शनिवार
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- क्षमा-याचना
रह गई कुछ गलतियाँ, अनुसृजन में अनजान से । मिच्छामि दुक्कडं हो मुझे, मांगू क्षमा भगवान से ॥ जो कुछ मिला है पुण्य मुझ को, ग्रन्थ-लेखन का मुदा । सब जीव का कल्याण हो, पाये सभी सुख सम्पदा ॥ ३४ ॥
रचना - प्रशस्ति
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अनुभव गुरु चरण रज साध्वी हेमप्रभा 'सुवर्णा'
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