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________________ ४१४ (२८) पुलाक लब्धि - जिस लब्धि के प्रभाव से साधक शासन व संघ की सुरक्षा लिये चक्रवर्ती की सेना से भी अकेला जूझ सकता है । 1 पूर्वोक्त अट्ठावीस लब्धियों के अतिरिक्त अन्य भी कई लब्धियाँ हैं, जैसे (i) अणुत्व लब्धि - जिस शक्ति से साधक अपना शरीर अणु जितना बनाकर मृणालतंतु में प्रवेश कर सकता है और वहाँ चक्रवर्ती की तरह सुखभोग कर सकता है 1 (ii) महत्त्व लब्धि - मेरु की तरह महान् शरीर बनाने की शक्ति विशेष । (iii) लघुत्व लब्धि - शरीर को वायु से भी हल्का बनाने की विशिष्ट शक्ति । (iv) गुरुत्व लब्धि - शरीर को वज्र से भी भारी बनाने की शक्ति विशेष । (v) प्राप्ति लब्धि - अपने स्थान पर बैठे-बैठे ही अपने अंगोपांगों को इच्छित - प्रदेश तक फैलाने की विशिष्ट शक्ति । (vi) प्राकाम्य लब्धि - जल में स्थल की तरह और स्थल में जल की तरह चलने की विशिष्ट शक्ति | (vii) वशित्व लब्धि - प्राणीमात्र को वश करने वाली विशिष्ट शक्ति । (viii) अप्रतिघातित्व लब्धि - पर्वत आदि के व्यवधान को भेदकर निराबाध गमन- आगमन कराने वाली विशिष्ट शक्ति । (ix) अन्तर्धान लब्धि - अदृश्य करने वाली विशिष्ट शक्ति । (x) कामरूपित्व लब्धि - एक साथ इच्छित अनेक रूप बनाने की विशिष्ट शक्ति । किसके कितनी लब्धि होती है ? भव्य पुरुष स्त्री पुरुष सभी लब्धियाँ होती अर्हत्, चक्रवर्ती, बलदेव, अर्हत्, केवली, हैं । वासुदेव, संभिन्न-श्रोता, विपुलमति, चारण, पूर्वधर, गणधर, बलदेव, द्वार २७० Jain Education International अभव्य स्त्री ऋजुमति, अभव्य पुरुष में नहीं होने चक्रवर्ती, वाली तेरह और मधुघृत वासुदेव, सर्पिराश्रव = चौदह पुलाक और आहारक इन संभिन्न- श्रोता, चारण, पूर्वधर, लब्धियाँ नहीं होती हैं । दस लब्धियों को छोड़कर गणधर, पुलाक और | शेष सभी लब्धियाँ होती आहारक इन तेरह को । भगवान मल्लिनाथ स्त्री छोड़कर शेष सभी लब्धियाँ रूप में तीर्थंकर बने यह होती हैं । आश्चर्यजनक घटना है। For Private & Personal Use Only ।। १४९२-१५०८ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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