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(२८) पुलाक लब्धि - जिस लब्धि के प्रभाव से साधक शासन व संघ की सुरक्षा लिये चक्रवर्ती की सेना से भी अकेला जूझ सकता है ।
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पूर्वोक्त अट्ठावीस लब्धियों के अतिरिक्त अन्य भी कई लब्धियाँ हैं, जैसे
(i) अणुत्व लब्धि - जिस शक्ति से साधक अपना शरीर अणु जितना बनाकर मृणालतंतु में प्रवेश कर सकता है और वहाँ चक्रवर्ती की तरह सुखभोग कर सकता है 1
(ii) महत्त्व लब्धि - मेरु की तरह महान् शरीर बनाने की शक्ति विशेष ।
(iii) लघुत्व लब्धि - शरीर को वायु से भी हल्का बनाने की विशिष्ट शक्ति ।
(iv) गुरुत्व लब्धि - शरीर को वज्र से भी भारी बनाने की शक्ति विशेष ।
(v) प्राप्ति लब्धि - अपने स्थान पर बैठे-बैठे ही अपने अंगोपांगों को इच्छित - प्रदेश तक फैलाने की विशिष्ट शक्ति ।
(vi) प्राकाम्य लब्धि - जल में स्थल की तरह और स्थल में जल की तरह चलने की विशिष्ट शक्ति |
(vii) वशित्व लब्धि - प्राणीमात्र को वश करने वाली विशिष्ट शक्ति ।
(viii) अप्रतिघातित्व लब्धि - पर्वत आदि के व्यवधान को भेदकर निराबाध गमन- आगमन कराने वाली विशिष्ट शक्ति ।
(ix) अन्तर्धान लब्धि - अदृश्य करने वाली विशिष्ट शक्ति ।
(x) कामरूपित्व लब्धि - एक साथ इच्छित अनेक रूप बनाने की विशिष्ट शक्ति । किसके कितनी लब्धि होती है ?
भव्य
पुरुष
स्त्री
पुरुष सभी लब्धियाँ होती अर्हत्, चक्रवर्ती, बलदेव, अर्हत्, केवली, हैं । वासुदेव, संभिन्न-श्रोता, विपुलमति, चारण, पूर्वधर, गणधर, बलदेव,
द्वार २७०
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अभव्य
स्त्री
ऋजुमति, अभव्य पुरुष में नहीं होने चक्रवर्ती, वाली तेरह और मधुघृत वासुदेव, सर्पिराश्रव
=
चौदह
पुलाक और आहारक इन संभिन्न- श्रोता, चारण, पूर्वधर, लब्धियाँ नहीं होती हैं । दस लब्धियों को छोड़कर गणधर, पुलाक और
| शेष सभी लब्धियाँ होती आहारक इन तेरह को
। भगवान मल्लिनाथ स्त्री छोड़कर शेष सभी लब्धियाँ रूप में तीर्थंकर बने यह होती हैं । आश्चर्यजनक घटना है।
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।। १४९२-१५०८ ॥
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