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प्रवचन-सारोद्धार
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वह अन्यत्र भाग सकता है। यह तमस्काय इतना भयंकर है कि देवता भी इसमें सहसा प्रवेश करने का साहस नहीं करते। इसमें गमनागमन करना देवताओं के लिये भी दुष्कर है ॥१४०३ ॥
|२५६ द्वार : |
अनन्तषट्क
सिद्धा निगोयजीवा वणस्सई काल पोग्गला चेव। सव्वमलोगागासं छप्पेएऽणतया नेया ॥१४०४ ॥
-गाथार्थअनन्त षट्क-१. सिद्ध २. निगोद के जीव ३. वनस्पति ४. काल ५. पुद्गल तथा ६. अलोकाकाश-ये छ: वस्तुयें अनन्त हैं ।।१४०४॥
-विवेचन- (१) सिद्ध (२) निगोद के जीव (३) प्रत्येक वनस्पति के जीव
अनन्त तीनों कालों का समय
संख्या समस्त पुद्गल परमाणु
वाले (६) समस्त अलोकाकाश के प्रदेश
॥१४०४॥
(४)
|२५७ द्वार:
अष्टांग-निमित्त
अंगं सुविणं च सरं उप्पायं अंतरिक्ख भोमं च। वंजण लक्खणमेव य अट्ठपयारं इह निमित्तं ॥१४०५ ॥ अंगप्फुरणाईहिं सुहासुहं जमिह भन्नइ तमंगं । तह सुसुमिणय-दुस्सुमिणएहिं जं सुमिणयंति तयं ॥१४०६ ॥ इट्ठमणिटुं जं सरविसेसओ तं सरंति विन्नेयं । रुहिरवरिसाइ जंमिं जायइ भन्नइ तम्मुपायं ॥१४०७ ॥ गहवेहभूयअट्टहासपमुहं जमंतरिक्खं तं । भोमं च भूमिकंपाइएहिं नज्जइ वियारेहिं ॥१४०८ ॥
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