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________________ ३५८ परमाणू तसरेणू रहरेणू अग्गयं च वालस्स । लिक्खा जूया य जवो अट्ठगुणविवड्ढिया कमसो ॥१३९१ ॥ वीसं परमाणुलक्खा सत्तानउई भवे सहस्साइं । सयमेगं बावन्नं एगंमि उ अंगुले हुंति ॥ १३९२ ॥ परमाणू इच्चाइक्कमेण उस्सेहअंगुलं भणियं । जं पुण आयंगुलमेरिसेण तं भासियं विहिणा ॥१३९३ ॥ जे जंमि जुगे पुरिसा अट्ठसयंगुलसमूसिया हुंति । तेसिं जं नियमंगुलमायंगुलमेत्थ तं होई ॥१३९४ ॥ जे पुण एयपमाणा ऊणा अहिगा व तेसिमेयं तु । आयंगुलं न भन्नइ किंतु तदाभासमेवत्ति ॥ १३९५ ॥ उस्सेहंगुलमेगं हवइ पमाणंगुलं सहस्सगुणं । उस्सेहंगुलदुगुणं वीरस्सायंगुलं भणियं ॥१३९६ ॥ आयंगुलेण वत्युं उस्सेह- पमाणओ मिणसु देहं । नगपढविविमाणाइं मिणसु पमाणंगलेणं तु ॥१३९७ ॥ -गाथार्थ उत्सेधांगुल आत्मांगुल और प्रमाणांगुल - आगम में व्यवहारोपयोगी तीन अंगुल बताये हैं१. उत्सेधांगुल २. आत्मांगुल तथा ३. प्रमाणांगुल ।। १३८९ ।। सुतीक्ष्ण शस्त्र भी जिसे छिन्न- भिन्न नहीं कर सकता तथा जो परिमाण का आदि कारण है, केवलज्ञानी उसे परमाणु कहते हैं ।। १३९० ॥ द्वार २५४ परमाणु, त्रसरेणु रथरेणु, वालाग्र, लीख, जूं और यव-ये उत्तरोत्तर आठ गुणा बड़े होते हैं ।। १३९१ ॥ एक उत्सेधांगुल में बीस लाख सत्ताणु हजार एक सौ बावन परमाणु होते हैं ।। १३९२ ।। परमाणु आदि के क्रमपूर्वक उत्सेधांगुल का वर्णन किया। अब विधिपूर्वक आत्मांगुल बताया जाता है | १३९३ ॥ जिस युग में जो पुरुष अपने अंगुल से एक सौ आठ अंगुल परिमाण होते हैं उनका अंगुल 'आत्मांगुल' कहलाता है ।। १३९४ ॥ Jain Education International जो अपने अंगुल से एक सौ आठ अंगुल नहीं है पर न्यूनाधिक है उनका अंगुल आत्मांगुल नहीं परन्तु 'आत्मांगुलाभास' कहलाता है ।। १३९५ ।। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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