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________________ ३५२ द्वार २४८ । संपूर्ण शरीर में निन्याणु लाख रोम कूप हैं। दाढ़ी-मूंछ और सिर के बाल सहित रोमराजी की संख्या साढ़े तीन करोड़ हैं॥१३८० ॥ शरीर में मूत्र और रक्त का पृथक्-पृथक् परिमाण एक आढ़क है। चरबी ? आढ़क है। मस्तक का भेजा प्रस्थ परिमाण है ।।१३८१ ॥ शरीर में मल छ: प्रस्थ परिमाण होता है। पित्त और कफ पृथक्-पृथक् एक कुलव परिमाण होते हैं। वीर्य अर्ध कुलव। यदि ये चीजें उक्त परिमाण से हीनाधिक हो तो समझना चाहिये कि शरीर में किसी प्रकार का दोष है ॥१३८२ ।। स्त्री के शरीर में ग्यारह और पुरुष के शरीर में नौ द्वार हैं। हड्डी, मांस, मल, मूत्र और रक्त के समूह रूप इस शरीर में क्या पवित्रता है? ॥१३८३ ।। -विवेचन(i) पिता का शुक्र और (ii) माता का शोणित ये दोनों शरीर के मुख्य कारण हैं। (ii) ओजस-यह शरीर-रचना का सर्वप्रथम कारण है, जब जीव गर्भ में आकर उत्पन्न होता है, सर्वप्रथम वह ओज (शुक्र मिश्रित शोणित) के पुद्गलों को ग्रहण करता है। शरीर रचना का प्रारंभ इन्हीं पुद्गलों से होता है। शरीर का स्वरूप-शरीर रचना का मुख्य भाग है पृष्ठ-वंश (रीढ़ की हड्डी)। बांस के पर्वो की तरह इसमें १८ संधियाँ होती हैं । १२ संधियों में से अर्थात् दोनों तरफ की ६-६ पसलियों में से हड्डियाँ निकल कर वक्षस्थल के मध्य-भागवर्ती अर्थात् ऊपरी हड्डी से संलग्न हो जाती है, जिससे वक्षःस्थल का आकार कटोरा जैसा बन जाता है। कहा है कि-इस शरीर में १२ पसलियों का डिब्बे जैसे आकार वाला एक पृष्ठ करंडक होता है। पृष्ठवंश की छ: सन्धियों से दोनों ओर छ:-छ: पसलियाँ निकलती हैं और वे दोनों पाश्र्यों को आवृत करती हुई, हृदय के दोनों ओर वक्षपंजर से नीचे व पेट से ऊपर परस्पर एक-दूसरे को स्पर्श न करते हुए रहती हैं। इसका कड़ाई जैसा आकार होने से इसे 'कटाह' कहते हैं। अवयवों का प्रमाण एवं संख्या १. जिह्वा = ७ आत्मांगुल लम्बी और ४ पल प्रमाण तौल में होती है। २. आँख का गोलक = २ पल प्रमाण है। ३. शिर = ४ अस्थिखंडों से निर्मित होता है। ४. हृदय का मांसखण्ड = साढ़े तीन पल प्रमाण है। ५. दाँत = ३२ (अस्थिखंडरूप) हैं। ६. कलेजा = २५ पल प्रमाण हैं। ७. दोनों अन्त्र = ५..५ हाथ प्रमाण हैं। ८. संधियाँ = १६० हैं ।सन्धि = हड्डियों का जोड़। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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