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द्वार २३१
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(vii) केवली समुद्घात-जिन केवलज्ञानी परमात्मा का आयु मात्र अन्तर्मुहूर्त प्रमाण रह गया है और नाम, गोत्र व वेदनीय कर्म की स्थिति अधिक है उन्हें इन तीनों कर्मों की स्थिति को आयुतुल्य करने के लिये केवली समुद्घात करना पड़ता है । समुद्घात करने वाले केवली सर्वप्रथम अपने आत्म-प्रदेशों को बाहर निकालकर शरीर प्रमाण स्थूल और नीचे से ऊपर चौदहराज प्रमाण दीर्घदंड बनाते हैं। दूसरे समय में स्वदेह प्रमाण मोटा तथा उत्तर-दक्षिण में लोक के अन्त भाग तक लम्बा कपाट बनाते हैं। तीसरे समय में ऐसा ही एक कपाट पूर्व-पश्चिम में लोक के अन्त तक लम्बा बनाते हैं। उस समय आत्म-प्रदेशों की स्थिति मन्थनी की तरह हो जाती है। चौथे समय में मन्थनी के बीच का रिक्त स्थान भरते हैं। उस समय सम्पूर्ण लोक आत्म-प्रदेशों से व्याप्त बन जाता है। तत्पश्चात् पाँचवें समय में मन्थनी के अन्तरों में भरे गये आत्म-प्रदेशों का संकोच करते हैं। छठे समय में मन्थनी के आकार का संहरणकर कपाट रूप शेष रखते हैं। सातवें समय में कपाट का भी संहरण कर दंडाकार शेष रखते हैं। आठवें समय में दंड का भी संहरणकर सभी आत्म प्रदेशों को पुन: शरीरस्थ कर लेते हैं। इस प्रकार आठ समय का केवली समदघात करके आय की अपेक्षा अधिक स्थिति वाले वेदनीय नाम और गोत्र कर्म की निर्जरा करते हैं।
समुद्घात का काल प्रमाण-वेदनीय-कषाय, मरण-वैक्रिय तैजस्-आहारक समुद्घात का काल प्रमाण अन्तर्मुहूर्त का है। केवली समुद्घात आठ समय का है।
केवली समुद्घात में योग–योग = मन, वचन और काया की प्रवृत्ति ।केवली समुद्धात गत जीव के मात्र काययोग ही होता है ।मनोयोग और वचनयोग का उस समय कोई प्रयोजन नही है। १ले एवं ८वें समय में औदारिक काययोग होता है, कारण पहले और आठवें समय में
समुद्घात का प्रारम्भ एवं अन्त होने से औदारिक काययोग की
ही प्रधानता रहती है। २रे, ६ठे, ७वें समय में इनमें औदारिक मिश्र की प्रधानता है, कारण उस समय औदारिक
और कार्मण दोनों का सम्मिलित प्रयास होने से औदारिक मिश्र
का व्यापार होता है। ३रे, ४थे, ५वें समय में इस समय औदारिक से बाहर केवल कार्मण काययोग का ही
मुख्य रूप से व्यापार होता है। यही कारण है कि केवली समुद्घात के ३रे, ४थे, ५वें समय में जीव अनाहारी होता है तथा जो अनाहारी
होता है, वह निश्चित रूप से कार्मण योगी होता है । जीवों में समुद्घात(१) मनुष्य में
पूर्वोक्त ७ समुद्घात (२) एकेन्द्रिय में = ५ समुद्घात (वेदना, कषाय, मरण, तैजस् और वैक्रिय) (३) विकलेन्द्रिय में = ४ समुद्घात (वेदना, कषाय, मरण, तैजस्) (४) असंजी पंचेन्द्रिय में = ४ समदघात (वेटना कषाय मरण जम)
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