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प्रवचन-सारोद्धार
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इन १६ जीव भेदों के पर्याप्ता, अपर्याप्ता दो-दो भेद होने से कुल मिलाकर जीव के १६ x २ = ३२ भेद हुए। ५६ प्रकार(i) नारक
= ७ (रत्नप्रभा आदि ७ नारकी में पैदा होने वाले जीव) भवनपति = १० (असुर आदि १० निकाय के देव) (iii) व्यन्तर
८ (यक्ष ......राक्षस आदि) (iv) ज्योतिष
५ (सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र, तारा) (v) कल्प
१२ (सौधर्म, ईशान आदि १२ देवलोक के देव) (vi) ग्रैवेयक
९ (सुदर्शन ....सुप्रतिबद्ध आदि ग्रैवेयक के देव) (vii) अनुत्तर
५ (विजय ...वैजयन्त आदि के देव)
-- ५६ जीव (वैक्रिय शरीरी है) ५८प्रकार
-- पूर्वोक्त ५६ भेद में मनुष्य और तिर्यंच ये २ मिलाने से ५८
भेद होते हैं। ११६ प्रकार
- पूर्वोक्त ५८ के पर्याप्ता और अपर्याप्ता = ११६ भेद हैं। १४६ प्रकार(i) सूक्ष्म पृथ्वीकाय
(ix) सूक्ष्म साधारण वनस्पतिकाय (ii) बादर पृथ्वीकाय
(x) बादर साधारण वनस्पतिकाय (iii) सूक्ष्म अप्काय
(xi) बादर प्रत्येक वनस्पतिकाय (iv) बादर अप्काय
(xii) द्वीन्द्रिय (v) सूक्ष्म तेउकाय
(xiii) त्रीन्द्रिय (vi) बादर तेउकाय
(xiv) चतुरिन्द्रिय (vii) सूक्ष्म वायुकाय
(xv) असंज्ञी पंचेन्द्रिय (viii) बादर वायुकाय
पूर्वोक्त जीव पर्याप्ता-अपर्याप्ता के भेद से २-२ प्रकार के हैं अत: कुल जीव भेद १५ x २ = ३० हैं। इनमें उपर्युक्त ११६ जीव भेद मिलाने से ११६ + ३० = १४६ जीव भेद होते हैं।
• ११६ के अन्तर्गत देव, मनुष्य, नरक और तिर्यंच ये चारों ही आ जाते हैं, इसलिये संज्ञी ___ पंचेन्द्रिय के भेद यहाँ अलग से ग्रहण नहीं किये। १४६ जीव भेदों में भव्य, अभव्य, दूरभव्य और आसन्नभव्य ४ प्रकार के जीव होते हैं। (i) भव्य
- मोक्ष जाने की योग्यता वाले। ये निश्चित मोक्ष जायेंगे ही, ऐसा नियम नहीं है। भव्यत्व अनादिकालीन है। यह कभी नष्ट नहीं होता। इनमें कुछ जीव ऐसे होते हैं जो भव्य होते हुए भी मोक्ष नहीं जाते हैं।
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