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________________ प्रवचन-सारोद्धार २४७ पंचविध षड्विध - एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय एवं पंचेन्द्रिय। - एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय और अनिन्द्रिय (सिद्ध) अथवा पृथ्वी, अप, तेउ, वाउ, वनस्पति और त्रस। -- पृथ्वी, अप, तेउ, वाउ, वनस्पति, त्रस और अकाय (सिद्ध)। सप्तविध अष्टविध (i) अंडज (ii) रसज (iii) जरायुज (iv) संस्वेदज (v) पोतज - अंडे में पैदा होने वाले जीव। जैसे पक्षी, मत्स्य, सर्प, छिपकली आदि। - रस में पैदा होने वाले जीव । जैसे छाछ, दही आदि में पैदा होने वाले कृमि। - जरायु सहित पैदा होने वाले जीव, जैसे गाय, भैंस, मनुष्य आदि । - पसीने में पैदा होने वाले जीव। जैसे जूं, खटमल, लीख आदि । - चर्म की थैली के आवरण सहित जन्म लेने वाले जीव, जैसे हाथी, जौंक चमगादड आदि। - तथाविध वर्ण, गंध, रस आदि के संयोग से पैदा होने वाले ___जीव । जैसे मक्खी, मच्छर, चींटी आदि । --- भूमि के भीतर से उत्पन्न होने वाले जीव। जैसे पतंगे, खद्योत आदि। - देव-शय्या में सहज रूप से पैदा होने वाले देवादि एवं कुंभी में उत्पन्न होने वाले नारक। (vi) संमूर्च्छिम (vii) उद्भेदज (viii) उपपातज नवविध. (i) (ii) (iii) दशविध पृथ्वीकाय अप्काय तेउकाय (iv) वायुकाय (vii) त्रीन्द्रिय (v) वनस्पतिकाय (viii) चतुरिन्द्रिय (vi) द्वीन्द्रिय (ix) पंचेन्द्रिय पूर्वोक्त अष्टविध जीव के भेदों में असंज्ञी, संज्ञी ये दो भेद मिलाने से = दशविध जीव के भेद होते हैं। - पूर्वोक्त दशविध जीव के भेदों में सिद्ध का एक भेद मिलाने से = एकादशविध जीव के भेद होते हैं। एकादशविध द्वादशविध (i) (ii) (iii) पृथ्वी अप् तेउ (iv) (v) (vi) वाउ वनस्पति और त्रस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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