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द्वार १८७
उत्सेधांगुल से प्रमाणांगुल बहुत अधिक बड़ा है । अत: प्रत्येक वनस्पति की उत्सेधांगुल से साधिक एक हजार योजन की अवगाहना कैसे घटित होगी।
उत्तर-पूर्वोक्त दोष यहाँ नहीं होगा, क्योंकि उत्सेधांगुल से साधिक एक हजार योजन की ऊँचाई वाले कमल आदि, ‘परमाणु रहरेणू' इत्यादि क्रम से निष्पन्न उत्सेधांगुल से एक हजार योजन गहरे जो समुद्र गोतीर्थ आदि मनुष्य लोक में हैं, उन्हीं में उत्पन्न होते हैं। किन्तु प्रमाणांगुल से एक हजार योजन गहरे समुद्र, पद्मद्रह आदि में जो कमल उत्पन्न होते हैं वे पृथ्वी के विकार रूप हैं। सारांश यह है कि-प्रमाणांगुल से एक हजार योजन गहरे समुद्र आदि में होने वाले कमल पृथ्विकायरूप है जैसे, पद्मसरोवर में लक्ष्मीदेवी का कमल है। किन्तु अन्य गोतीर्थ आदि में जो कमल हैं वे वनस्पति रूप हैं। पूर्वोक्त शरीर परिमाण उन्हीं की अपेक्षा से है। क्योंकि वहाँ लता आदि भी साधिक एक हजार योजन लंबी होती है।
विशेषणवती ग्रन्थ में भी कहा है कि लक्ष्मीदेवी का निवासरूप कमल पृथ्वी-परिणाम रूप है, किन्तु गोतीर्थ आदि में उत्पन्न होने वाले कमल वनस्पतिरूप हैं। उत्सेधांगुल से एक हजार योजन गहरे शेष जलाशयों में उत्पन्न होने वाली लतायें भी लंबाई की अपेक्षा एक हजार योजन की होती हैं।
यहाँ पृथ्वीकाय आदि का देहमान जघन्य और उत्कृष्ट दोनों ही अंगुल का असंख्यातवां भाग बताया है, किन्तु जघन्य से उत्कृष्ट असंख्यातवां भाग असंख्यात गुण अधिक होता है, क्योंकि असंख्यात के भी असंख्यात प्रकार हैं। जैसे सूक्ष्म साधारण वनस्पति के असंख्यात शरीर = सूक्ष्म वायुकाय का शरीर।
• अर्थात् वायुकाय के शरीर का प्रमाप रूप अंगुल का असंख्यातवां भाग इतना बड़ा है कि
उसमें सूक्ष्म साधारण वनस्पतिकाय के असंख्यात शरीर का समावेश हो जाता है। आगे भी
इसी तरह समझना है। सूक्ष्म वनस्पतिकाय के शरीर से असंख्यात गुण = सूक्ष्म तेउकाय का शरीर है। अधिक बड़ा सूक्ष्म तेउकाय के शरीर से असंख्यात गुण अधिक = सूक्ष्म अप्काय का शरीर है। सूक्ष्म अप्काय के शरीर से असंख्यात गुण अधिक = सूक्ष्म पृथ्वीकाय का शरीर है। सूक्ष्म पृथ्वीकाय के शरीर से असंख्यात गुण अधिक = बादर वायुकाय का शरीर है। बादर वायुकाय के शरीर से असंख्यात गुण अधिक = बादर अग्निकाय का शरीर है। बादर अग्निकाय के शरीर से असंख्यात गुण अधिक = बादर अप्काय का शरीर है। बादर अप्काय के शरीर से असंख्यात गुण अधिक = बादर पृथ्वीकाय का शरीर है। बादर पृथ्वीकाय के शरीर से असंख्यात गुण अधिक = बादर निगोद का शरीर है ।
वनस्पति के जीव अनन्त हैं, किन्तु उनके शरीर असंख्याता हैं, कारण एक से लेकर असंख्यात शरीर में वनस्पति के अनंत जीव रहते हैं ॥१०९९-११०४ ।।
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