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-गाथार्थ
एकेन्द्रिय आदि का शरीर - परिमाण - वनस्पतिकाय रूप एकेन्द्रिय का उत्कृष्ट देहमान साधिक एक हजार योजन का है । मत्स्य आदि संमूर्च्छिम और गर्भज जलचरों का तथा सर्प आदि गर्भज उरपरिसर्प का उत्कृष्ट देहमान एक हजार योजन का है ।। १०९९ ।।
उत्सेधांगुल से निर्मित योजन की अपेक्षा से एक हजार योजन गहरे जलाशय में उत्पन्न होने वाले कमल की अपेक्षा से वनस्पति का पूर्वोक्त देहमाप घटित होता है । जो समुद्र या जलाशय प्रमाणांगुल की अपेक्षा हजार योजन गहरे हैं उनमें उत्पन्न कमल पृथ्वीकाय के विकाररूप हैं ।। ११००-११०१ ।।
अनंतकाय वनस्पति के शरीर की अपेक्षा सूक्ष्मवायुकाय के शरीर का परिमाण असंख्यगुण अधिक है। वायुकाय की अपेक्षा अग्निकाय का शरीर असंख्यातगुण अधिक है। अग्निकाय की अपेक्षा अप्काय का शरीर असंख्यातगुण अधिक है तथा अप्काय की अपेक्षा पृथ्वीकाय का शरीर असंख्यातगुण बड़ा है ।। ११०२ ।।
विकलेन्द्रिय का शरीर परिमाप क्रमशः बारह योजन, तीन कोस एवं चार कोस है। शेष जीवों की उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल का असंख्यातवां भाग परिमाण है ।। ११०३ ॥
गर्भज चतुष्पद की अवगाहना छ : कोस की, भुजपरिसर्प की कोस पृथक्त्व की, पक्षियों की धनुष पृथक्त्व की एवं मनुष्य की अवगाहना तीन कोस की है ।। ११०४ ॥
-विवेचन
१. एकेन्द्रिय
(यह परिमाप प्रत्येक वनस्पति की अपेक्षा से है |अन्यथा पृथ्वि, अप, तेउ, वायु और साधारण वनस्पति संमूर्च्छिम मनुष्य तथा सभी अपर्याप्त जीवों का जघन्य और उत्कृष्ट शरीर- प्रमाप अंगुल के असंख्यातवें भाग का है)
१२ योजन उत्कृष्ट
जघन्य
३ कोष उत्कृष्ट
अंगुल का
४ कोष उत्कृष्ट
असंख्यातवां भाग
वनस्पति का साधिक १००० योजन का शरीर प्रमाण गोतीर्थ, पद्मद्रह आदि में उत्पन्न होने
वाली लता, कमलनाल आदि की अपेक्षा से समझना ।
२. द्वीन्द्रिय ३. त्रीन्द्रिय
४. चतुरिन्द्रिय
द्वार १८७
१०००
योजन
साधिक
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पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच
'व्याख्या करने से विशेष ज्ञान होता है - इस न्याय के अनुसार पञ्चेन्द्रिय तिर्यंचों की विस्तार से अवगाहना बताई जाती है 1
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