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________________ द्वार १८१ १७६ 000000 छट्ठीओ पुढवीओ उव्वट्टा इह अणंतरभवंमि। भज्जा मणुस्सजम्मे संजमलंभेण उ विहीणा ॥१०९० ॥ -गाथार्थनरक से आगत जीवों को लब्धि-प्राप्ति—प्रथम तीन नरक से आगत जीव तीर्थंकर बन सकता है। चतुर्थ नरक से आगत जीव केवलज्ञानी हो सकता है। पाँचवीं नरक से निकलकर साधु, छट्ठी कलकर श्रावक तथा सातवीं नरक से निकल कर समकिती बन सकता है॥१०८७॥ प्रथम नरक से निकलकर चक्रवर्ती, द्वितीय नरक से निकलकर बलदेव, तृतीय नरक से निकल कर अरिहंत एवं चतुर्थ नरक से निकलकर जीव मोक्ष पद प्राप्त करता है।।१०८८ ।। -विवेचननारकी क्या बन सकते हैं? पहली से तीसरी नरक तक के जीव तीर्थंकर पहली से चौथी नरक तक के जीव केवलज्ञानी (४थी नरक के जीव तीर्थंकर नहीं बनते) पहली से पाँचवी नरक तक के जीव साधु पहली से छट्ठी नरक तक के जीव देश विरति पहली से सातवीं नरक तक के जीव सम्यक्त्वी विशेष लब्धि संभवपहली नरक से निकले हुए जीव चक्रवर्ती दूसरी नरक तक के जीव बलदेव, वासुदेव तीसरी नरक तक के जीव तीर्थंकर चौथी नरक तक के जीव मुक्तिगामी पाँचवीं नरक तक के जीव साधु बन सकते हैं (केवली नहीं) छट्ठी नरक तक के जीव कदाचित् मनुष्य बनते हैं, कदाचित् नहीं भी बनते । यदि मनुष्य बनते हैं तो भी सर्वविरति प्राप्त नहीं कर सकते। सातवीं नरक के जीव नियमत: तिर्यंच ही बनते हैं। श्रेणिक की तरह पूर्वबद्ध नरकायु वाले जीव ही पहली, दूसरी और तीसरी नरक से निकलकर तीर्थंकर बनते हैं ॥१०८७-९० ॥ Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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