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________________ ११४ द्वार १५२ [80845055000205055000000 ६ लेश्या (v) वनस्पतिकाय - वृक्ष, लतादिरूप शरीर है जिनका वह वनस्पति काय है। (vi) त्रसकाय - गतिशील शरीर वाला त्रसकाय है ॥९७५ ॥ जिनके द्वारा जीव कर्मों से लिप्त बनता है वे लेश्या हैं। कृष्ण नील, कापोत, तेज, पद्म व शुक्ल द्रव्य के संयोग से उत्पन्न होने वाले आत्मा के शुभ-अशुभ परिणाम विशेष लेश्या है। कहा है-भिन्न-भिन्न रंग के संयोग से जैसे स्फटिक भिन्न-भिन्न रंग वाला दिखाई देता है वैसे कृष्णादि द्रव्य के संयोग से आत्मा भी भिन्न-भिन्न परिणाम वाला बनता है। ये परिणाम लेश्या हैं। • लेश्या के स्वरूप के सम्बन्ध में मुख्यतया तीन मत हैं। (i) योग परिणाम (ii) कर्मनिष्यन्द तथा (iii) कर्मवर्गणानिष्पन्न। (i) इस मतानुसार लेश्या योग-वर्गणा के अन्तर्गत स्वतंत्र द्रव्य है, क्योंकि लेश्या का अन्वय-व्यतिरेक सयोगीपन के साथ है। इस मतवालों का कथन है कि योगवर्गणा के अन्तर्गत कुछ द्रव्य ऐसे हैं कि जो आत्मा में तथाविध शुभ-अशुभ परिणाम उत्पन्न करते हैं। लेश्या कषाय का परिणाम नहीं है पर योग के अन्तर्गत पित्त आदि द्रव्य जैसे कषाय का उद्दीपन करते हैं वैसे लेश्यायें भी कषाय की उद्दीपक होती हैं। अन्यथा (यदि लेश्याओं को कषाय का परिणाम मानें तो) १२-१३-१४ गुणस्थानों में लेश्या का अभाव होगा क्योंकि वहाँ कषाय का अभाव है, परन्तु वहाँ शुक्ल लेश्या होती है। यह मत हरिभद्रसूरि आदि का है। (ii) इस मत का आशय है कि लेश्याद्रव्य कर्मनिष्यन्दरूप (बध्यमान कर्म के प्रवाहरूप) है। चौदहवें गुणस्थान में कर्म के होने पर भी उसका निष्यन्द न होने से लेश्या का अभाव होता है। इस मत के अनुसार लेश्या कर्मप्रवाह रूप है। कर्म के प्रवाह के कारण ही आत्मा में शुभ-अशुभ परिणाम उत्पन्न होते हैं। (iii) तीसरे मत का यह मानना है कि लेश्या द्रव्य कर्मवर्गणा से बने हुए हैं, परन्तु वे आठ कर्मों से भिन्न हैं जैसे कि कार्मणशरीर । कहा है—'कार्मणशरीरवत्पृथगेव कर्माष्टकात्कार्मणवर्गणानिष्पन्नानि कृष्णादिद्रव्याणि' इति । • लेश्या के छ: प्रकार हैं। कृष्ण, नील, कापोत, तेज, पद्म व शुक्ल। कृष्ण -कृष्ण-द्रव्यरूप अथवा कृष्ण द्रव्य के संयोग से उत्पन्न परिणाम । नील -नील-द्रव्य अथवा नील द्रव्य के संयोग से उत्पन्न परिणाम । कापोत -कापोत-द्रव्य अथवा कापोत द्रव्य के संयोग से उत्पन्न परिणाम। तेज -तैजस्-द्रव्य अथवा तैजस् द्रव्य के संयोग से उत्पन्न परिणाम। पद्म -कमल सदृश द्रव्य अथवा वैसे द्रव्य के संयोग से उत्पन्न परिणाम । शुक्ल -शुक्ल द्रव्य अथवा शुक्ल द्रव्य के संयोग से उत्पन्न परिणाम । • प्रथम तीन लेश्या अशुभ हैं व अन्तिम तीन लेश्या शुभ हैं। इन लेश्याओं का स्वरूप समझाने हेतु जामुन खाने के इच्छुक छ: पुरुषों का तथा ग्रामघातक छ: पुरुषों का दृष्टान्त बताते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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